कहते हैं रावण ब्राम्हण था ...एक ऐसा असाधारण ब्राम्हण जो तपस्वी, शिवभक्त, तन्त्र विद्या में पारंगत, ज्ञानी एवं वेदों का परम ज्ञाता था I.... उस युग में ब्राम्हणों को ज्ञान का भण्डार एवं वाहक माना जाता था अतः उनकी हत्या करने का मतलब ज्ञान को नष्ट करने समान माना गया I ...अतः ब्राम्हण की हत्या को ब्रम्ह हत्या के बराबर मान कर शास्त्रों में ब्राम्हण को मृत्यु दण्ड देना भी वर्जित किया गया था I
न ब्राह्मणवधाद्भूयानधर्मा विद्यते भुवि।
तस्मादस्य वधं राजा मनसापि न चिन्तयेत्।।
अर्थात ब्राम्हण के वध से बढ़कर और कोई पाप नहीं। ब्राम्हण का वध करने की तो राजा को कल्पना भी नहीं करना चाहिए। .......खैर ..वर्ण व्यवस्था के दौर में राम एक क्षत्रिय राजा थे ..... I ...ये क़तई नहीं कहा जा सकता है कि उन्हें उक्त बात का ज्ञान नहीं होगा I .......जो भी हो ....... रावण जब मृत्यु के निकट था तब उसके ज्ञान के भंडार से कुछ ज्ञान समेट लेने के लिए ही राम ने शायद लक्ष्मण को रावण के पास भेजा हो !.......ज्ञान प्राप्त करने तो वे ख़ुद भी तो जा सकते थे परन्तु ....परन्तु ये व्यवहारिक दृष्टि से उचित नहीं होता ....I गौरतलब बात ये है कि राम मर्यादा पुरुषोत्तम भी हैं उन्हें अपनी लिमिटेशंस पता है I शायद उन्हें ये भी पता हो कि उन्होंने जो किया है.... उसका भुगतान उन्हें आने वाले युगों तक करना पड़े !!!