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Thursday, April 26, 2012

.......मेरे विचार में हिंदुत्व

             हिन्दू धर्म नहीं बल्कि प्रकृति है | प्रकृति स्व निर्मित होती है | वह आदि एवम् अनंत है | हिंदुत्व भी आदि एवम् अनंत है | अन्य धर्मों की तरह इसकी किसी ने स्थापना नहीं की है | बल्कि हिंदुत्व सभी धर्मों का मूल है | आज भले ही थोड़ी देर के लिए ह्में प्रतीत होता है की हिंदुत्व को राजनीतिक स्तर पर चोट पंहुचाई जा रही है परन्तु ध्यान से देखिए ये कार्य उसी प्रकार का है जिस प्रकार एक मच्छर विशाल हाथी का वध करने का सोच ले | एक बात ज़रूर समझने की है | धर्म उसे कहते हैं जो धारण किया जाए | धारण करने योग्य जो भी होता है वो सूक्ष्म होता है | प्रकृति तो आदि एवम् अनंत है, व अत्यंत विशाल है | विशालता को आप धारण कर ही नहीं सकते | हाँ आप उसके एक छोटे से अंग जरूर बन सकते हैं | हिंदुत्व भी आदि एवम् अनंत है इसलिए ये धारण करने योग्य नहीं है | अतः ये धर्म कतई नही हो सकता | दूसरे शब्दों में प्रकृति का दूसरा नाम हिंदुत्व है  | 
            प्रकृति दो सत्ताओं के समन्वय से बनी है- एक है आध्यात्मिकता, दूसरी है भौतिकता | सत्ता का भौतिक रूप हमारे सामने है जिसमें हम इस जगत की हर वास्तु को देख सकते हैं, महसूस कर सकते हैं | आध्यात्मिक सत्ता वह है जिसमें भौतिक सत्ता के क्रियाकलापों  द्वारा उत्पन्न परिणाम आते हैं | यही समन्वय हिंदुत्व भी में पाया जाता है | यह धर्म न होकर जीवन जीने का दर्शन है | हमारे ऋषि- मुनियों ने भी जीवन में आध्यात्मिकता एवम् भौतिकता के समन्वय की बात कही है | समन्वय इसलिए नहीं कि आपके जीवन में सुख समृद्धि बनी रहे बल्कि इसलिए कि आप प्रकृति के ज़्यादा नज़दीक रह सकें | प्रकृति के जितने आप नज़दीक रहेंगे उतने सुखी रहेंगे | प्रकृति माँ है | माँ अपनी संतान की हमेशा देखभाल करती है | उसके सुख और दुख की चिंता करती है | सुख और दुख दोनों मन की सत्ता है | मन यदि सुखी है, संतुष्ट है तो आप परम आनंद को महसूस करेंगे | सुखी होने से मेरा मतलब कार, फ्रिज, टी वी या अन्य उपभोक्तावादी वस्तुओं की उपलब्धता से नहीं है | इनकी अनुपलब्धता दुख एवम् तनाव को उत्पन्न करती है | इसका मतलब ये भी नहीं है कि आप इनके बिना जीवन बिताएँ | उपभोक्तावादी तमाम वस्तुएँ आप के जीवन को सरल बनाने का साधन मात्र हैं जब आप इन्हें अपने जीवन का अंतिम लक्ष्य मान लेते हैं तो तनाव का कारण बन जाता है | 
           प्रकृति अथवा हिन्दूत्व में सभी प्राणियों के जीवन जीने का रास्ता पूर्व में ही निर्धारित कर रक्खा है | बस कर्म करने की ज़रूरत है | प्रकृति कर्म प्रधान है | हिंदुत्व भी कर्म प्रधान है | कर्म प्रधान से तात्पर्य है कर्म पर बल देना है न कि उसके परिणाम पर | प्रकृति ने अपने आप उसके अंतर्गत रहने वाले हर प्राणी के कर्मों को निर्धारित कर रखा है | हिन्दू दर्शन में भी यही सिखाया जाता है | हिंदुत्व जैसा मैने पहले कहा है धर्म नहीं है क्योंकि जिस प्रकार हम पूरी प्रकृति को धारण नहीं कर सकते हैं उसी प्रकार हिंदुत्व भी धारण नहीं किया जा सकता है | सभी प्राणी केवल मात्र प्रकृति के नियमों की पालना कर सकते हैं उनकी शक्ति उतनी ही है | उसी प्रकार हिंदुत्व जो प्रकृति ही है, के नियमों की पालना मानव जाती को करनी पड़ती है | इन्हीं नियमों की पालना करने के लिए हमारे यहाँ आलग अलग रास्ते आपना लिए गए | उसके परिणाम स्वरूप कई मत मतमतांतर पैदा हो गए |  एक ने अपने आप को अलग से दिखाने के लिए परंपराएँ, भक्ति के तौर तरीक़े एवम् आध्यात्मिक विचारधारा को जन्म दिया जिन्हें आज हम हिन्दू धर्म कहते हैं | मेरी सोच अलग है | हिंदुत्व को धर्म कहकर सीमित नहीं किया जासकता | यदि आप इसे धर्म कहते हैं तो ये धारण का विषय हो गया | जब आप इसे धारण का विषय मानते हैं तो किसे धारण करना है ये मानव की इच्छा की बात हो गई | जबकि मेरा कहना है कि हिंदुत्व मानव की इच्छा अनिच्छा से परे है | जैसे भूख लगना मानव की इच्छा से पऱे है उसी प्रकार हिंदुत्व भी इच्छा अनिच्छा से ऊपर है | इस धरा पर बसने वाला हर इंसान पहले हिंदू है | जिस प्रकार सबसे पहले मानव बिना वस्त्र के होता है फिर अपनी इच्छानुसार कपड़े धारण करता है उसी प्रकार बाद में परंपरा, ईश्वर भक्ति के रास्ते वो धारण करता है | यहाँ धारण करने से भक्ति एवम् जीवन शैली को अपनाने से है | इस्लाम धर्मावलंबी या ईसाई धर्मावलंबी की जीवन् शैली और ईश्वर आराधना का तरीक़ा अलग है | सभी धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन कीजिए तो आप पाएँगे कि हिंदुत्व किन्हीं नियमों, कायदो एवम् ईश्वर आराधना के सीमित रास्तों पर आधारित नही है | हिंदुत्व का मूल वेद, पुराण, परंपराएँ, दर्शन एवम् मान्यताएँ है जो हज़ारों सालों से प्रचलित हैं | ये सभी किसी व्यक्ति विशेष द्वारा लिखे नहीं गए हैं | हाँ इतना ज़रूर है समय समय पर हमारे यहाँ कई ऋषि, मुनि या महापुरुष हुए हैं जिन्होने वेदों आदि को समझने का प्रयास किया है तथा उनकी व्याख्या की हैं | जिनमें आदि शंकराचार्य प्रमुख हैं | आज भी कई संत हैं जो वेदों के प्रकांड विद्वान हैं | अफ़सोस इस बात का है कि समाज में कई बार भग्मा कपड़े पहने नकली एवम् ठग लोग पैदा हो जाते है जिनके कारण असल संत समाज बदनाम हो जाता है | कई बार गंदी राजनीति के चलते इन बाबाओं का उपयोग हिंदुत्व को बदनाम करने के लिए भी किया जाता रह है | मेरे विचार में हिंदुत्व आदि एवम् अनंत है | प्रकृति का अंत करने की सोच एवम् हिंदुत्व को नष्ट करने की सोच एक समान है | आप खुद सोचिए हिंदुत्व हज़ारों सालों से इस धरा पर है | इन हज़ारों सालों में इसे नष्ट करने के कई बार प्रयास किए गए, इतिहास एवम् पौराणिक कथाएँ इस बात के गवाह हैं | परंतु ये प्रयास जब जब अपने चरम पर पहुँचे हैं तब तब हमारी ज़मीन पर कोई महापुरुष अवतरित हुआ है और हिंदुत्व को नाश करने वाली शक्तियों का अंत किया हैं | आप ज़रा ध्यान दीजिए जो नष्ट करने वाली शक्तियाँ हैं वे स्वयं इसी प्रकृति से पैदा हुई हैं चाहे वे इतिहास में इस्लामिक शासकों के रूप में आई हों या अन्य किसी रूप में, परंतु जो महापुरुष बचाने के लिए आए हैं वे हमारी मान्यताओं के अनुसार प्रकृति से परे ईश्वरीय शक्ति से निकल कर अवतरित हुए हैं जैसे भगवान राम, कृष्ण, इसके अलावा कई महापुरुष महात्मा बुद्ध, भगवान महावीर आदि | मेरे विचार में हिंदुत्व कभी नष्ट हो ही नही सकता है ये दिगर बात है कि हिंदुत्व के अंतर्गत जो सभ्यता एवम् संस्कृति है, को चंद समय के लिए चोट पहुँचा कर कोई ये सोच ले की उसने हिंदुत्व को नष्ट कर दिया है तो ये उसकी  नादानी है |
             ये परम सत्य है कि हिन्दुत्व सतत एवम् निरंतर है | व्यावहारिक दृष्टिकोण से हिन्दुत्व में वो कौनसी खास बातें हैं जिनके कारण यह सतत रूप से चला आ रहा है | ये खोज का विषय है | एक बात और हिन्दुत्व की निरंतरता या सततता के पीछे कोई एक विशेषता नहीं है | इसके पीछे कई कारण है | मेरी दृष्टि में हिन्दुत्व की निरंतरता के लिए उसकी दो प्रमुख विशेषताएँ अलग अलग एवम् विपरीतार्थ हुए भी उत्तरदायी हैं -प्रथम आध्यात्मिकता, दूसरी भौतिकता | दोनों सत्ताएँ एक दूसरे से भिन्न होते हुए भी हिन्दुत्व में इनका समन्वय पाया जाता है | आध्यात्म एक ओर मानव को भौतिकता से दूर करता है तो "कर्म" दूसरी ओर भौतिकता की ओर खींचता है | परंतु भगवान कृष्णा ने गीता में दोनों के मध्य समन्वय एवम् तालमेल बैठाने की बात कही है | आध्यात्मिकता एवम् भौतिकता इस जगत की दो सत्ताएँ हैं | स्थूल रूप में जो भी इस जगत में मौजूद है जिसे छुआ जा सकता, देखा जा सकता है, महसूस किया जा सकता है, को भौतिकता कहते हैं | जो कर्मों से परिलक्षित होती है | दूसरी ओर इन्हीं कर्मों के किए जाने से जो परिणाम या फल प्राप्त होते हैं, मेरी दृष्टि में आध्यात्मिकता है | कर्मों से अभिप्राय उन सभी कर्मों से है जो प्रकृति में विद्यमान सभी प्राणियों द्वारा किए जाते है इसके अलावा वे कर्म भी इसमें शामिल हैं जो स्वतः होते हैं | अब ज़रा सोचिए कर्मों का कितना बड़ा दायरा है अर्थात जितनी बड़ी प्रकृति उतना बड़ा कर्मों का दायरा | जीतने अधिक कर्म उतने अधिक परिणाम | अब आप खुद सोचिए कि इस विशाल प्रकृति में आपका अस्तित्व कितना सूक्ष्म है ऐसे में आप द्वारा किए गए कर्म का परिणाम क्या होगा ये आप को भी नहीं पता | इसीलिए भगवान कृष्ण ने कहा है कि तेरा काम सिर्फ़ कर्म करना है उसके परिणाम को मुझ पर छोड़ दे | खैर इस पर आगे लिखूंगा | इसी गणित को हम एक सामान्य से उदाहरण से समझ सकते हैं | समझ लीजिए आप एक बहुत बड़े मेनेजमेंट के बिग बॉस हैं | मेनेजमेंट में कई लोग हैं | सभी के कार्य आप द्वारा निर्धारित हैं | इन्हीं की बदौलत मेनेजमेंट चलता है तथा अच्छे परिणाम पाता है | चूँकि आप बिग बॉस हैं इसलिए आप को पता है कि अमुक व्यक्ति के कार्य का परिणाम क्या होगा परंतु उस अमुक व्यक्ति को पता नहीं होता है की उसके कार्य का परिणाम क्या होगा |
        आध्यात्मिकता एवम् भौतिकता का आपसी समन्वय ही मानव जीवन् को संतुलित बनाए रखता है | भौतिकता से परे ईश्वरीय सत्ता को पाना आध्यात्मिकता है परंतु इसी ईश्वरीय सत्ता को पाने की राह भौतिकता से हो कर गुजरती है यही हिंदुत्व का मूल मंत्र है | इसी तालमेल को हमारे यहाँ जनजीवन में देखा जा सकता है | आपकी राहें अलग अलग हो सकती हैं परंतु मंज़िल एक होने से हमारी धरा पर पाए जाने वाले हर मानव में आहिसा, प्रेम, सहिष्णुता, सामाजिकता आदि गुण पाए जाते हैं | ये सभी गुण प्राकृतिक हैं | इन गुणों को अलग से धारण नहीं कराया जाता है | जब आप इन्हें किसी साँचे में ढाल कर धारणीय बना देते है और उस साँचे का नाम विशेष दे देते हैं तो वो धर्म कहा जाता है | जबकि हिंदुत्व ऐसे किसी साँचे का नाम नहीं है | मैने  जो कहा है कहा है ये आज की हमारी जीवन् शैली जो पश्चिम से प्रभावित है में रह कर समझ पाना थोड़ा मुश्किल है | आज आध्यात्मिकता एवम् भौतिकता में संतुलन बिगड़ गया है | धन्यवाद | क्रमश:......  धन्यवाद | क्रमश:.....


(ये विचार मेरे अपने हैं, किसी पुस्तक से या किसी अन्य माध्यम से नहीं लिए गये हैं | हो सकता है किसी बिंदु पर आप असहमत हों उसके लिए क्षमा | )

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