एक राजा था I उसके दरबार में एक दिन एक व्यापारी आया I व्यापारी बड़ा चतुर एवं शातिर था I ....उसने राजा को समझाया कि महाराज आपके ख़जाने में जो धन पड़ा है यदि उसमें से हर माह चुटकी भर धन ऋण के रूप मुझे दें....तो मैं उससे व्यापार कर दोगुना पुनः लौटा सकता हूँ..... I राजा को व्यापारी की बात पसंद आई I ........."धन कितना देना होगा" - राजा ने पूछा ...तो व्यापारी ने झट से अपनी ज़ेब से एक ख़ाली गुब्बारा निकाल कर राजा को दिखाते हुए कहा कि महाराज ! बस इस गुब्बारे जितनी बड़ी थैली भरकर ! .....राजा ने खजांची को गुब्बारे जितनी बड़ी थैली में समाये उतना धन हर माह देने का आदेश दे दिया I ......पहला माह पूरा होते ही...वादे के मुताबिक़ व्यापारी ने .....राजा को दिखाए गए गुब्बारे जितनी थैली में भरकर दो गुना धन लौटा दिया I.... .....राजा व्यापारी की ईमानदारी एवं हर माह दो गुना धन पाकर बड़ा..... ख़ुश रहने लगा I....माह पर माह गुज़रने लगे...दोगुना धन आने के बावज़ूद ख़ाली होते ख़जाने को देख खजांची चिंतित रहने लगा I उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था I ....एक दिन उसने यह बात राजा को बताई ! ...... राजा भी कुछ समझ नहीं पाया I .... राजा के दरबार में एक बुद्धिमान व्यक्ति था I .... उसने व्यापारी को बुलाया ..और उसकी ज़ेब से दो थैलियाँ निकाली ....एक छोटी और एक बड़ी I दोनों थैलियाँ राजा एवं खजांची को दिखाते हुए बोला - "महाराज ! यह व्यापारी शातिर है.......जब यह ख़जाने में धन लेने जाता है तब गुब्बारे को हवा भर कर बड़ा कर देता है और बड़ी थैली जितना धन ले जाता है ....और लौटाते वक़्त ख़ाली गुब्बारे जितनी छोटी थैली से नाप कर दोगुना धन देकर अपना वादा पूरा कर लेता है I ...राजा एवं खजांची को पूरी बात समझ आ चुकी थी I ....
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