पाकिस्तान में मुसलमानों की जनसंख्या बीस करोड़ के लगभग है........इधर भारत में भी लगभग बीस करोड़ के आसपास मुस्लिम्स हैं ....I .....पाकिस्तान का कुल क्षेत्रफल .....सात लाख छियानवे हज़ार वर्ग किलोमीटर है जो अंदाज़न भारत के कुल क्षेत्रफल का एक चौथाई है I .......खैर.....हम आज़ाद हुए और भारत से पाकिस्तान अलग हो बँटवारा हो गया I जिसका भारत में आज भी अफ़सोस किया जाता है ...साथ ही इसके लिए महात्मा गाँधी को दोषी माना जाता है हालाँकि .......ये दिगर सवाल होगा कि बँटवारे का अफ़सोस ज़मीन छिन जाने का है या भारत से मुसलमानों के चले जाने का है अथवा हिन्दुओं से मुसलमानों की जुदाई का है ???
........एक गणित के अनुसार भारतीय मुसलमान पाकिस्तान बराबर की ज़मीन पर ...भारत में बसे हुए हैं ....I यदि बँटवारा नहीं होता तो आज भारत में चालीस करोड़ मुस्लिम्स होते .... ये एक बड़ी ही सामान्य सी बात है ....परन्तु बँटवारे की एक खास बात ये थी कि मो.अलि ज़िन्ना के साथ भारत के आधे मुसलमान ही पाकिस्तान गए थे .....तो क्यों नहीं इसे मुसलमानों का बँटवारा माना जाये ?? .....एक ....भारत के मुसलमान और दूसरे इस्लाम के नाम पर ज़िन्ना के साथ हो गए ..मुसलमान I जो भी हो ........पाकिस्तान को तो कभी न कभी बनना ही था कल नहीं तो आज I ... ....उस वक़्त जो बँटवारा हुआ था ..उसमें भारत की सिर्फ़ ज़मीन ही गयी थी I.... .... ..........आज के संदर्भ में .....बात करें तो ...तो....जिन्हें अलग होना था वे पाकिस्तान तभी चले गए I
.........मेरा अभिप्राय बस इतना कि हमें बँटवारे को पहले सही तरह से समझना होगा.....वोट बैंक की राजनीति ने इसे हिन्दू मुस्लिम के बँटवारे के तौर पर चित्रित किया है.... जबकि वास्तविक में यह बँटवारा मुसलमानों का हुआ था I .....आज बँटवारे को ग़लत बताने का मतलब.... पाकिस्तान के मुसलमानों को भारत के साथ जोड़कर देखने जैसा है .....जो क़तई संभव नहीं हैI .... इस्लाम के नाम पर .....ज़िन्ना के साथ चले गए मुसलमानों से आप क़तई अपेक्षा नहीं कर सकते थे कि वे भारतीय होकर भारत का साथ निभाते !....दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु ये भी है कि.......पाकिस्तान चले गए मुसलमानों के समकक्ष भारतीय मुसलमानों को.... खड़ा कर भारत के प्रति उनके लगाव पर संदेह कर ...देशभक्ति का आंकलन करना भी जायज़ नहीं है I ....आज हमें बस इस बात का अफ़सोस करना चाहए कि ........... बँटवारे के नाम पर हमारे देश की चौथाई ज़मीन चली गयी .........और अफ़सोस है भी I ........बँटवारे के दौरान जो भी जान माल का नुकसान हुआ था उसे ..मानवता के नाते उचित नहीं माना जा सकता....परन्तु बँटवारा नहीं होता तो ...... भारत की आबो हवा में बैठे बैठे एक अलग मुस्लिम राष्ट्र का ख्वाब देखना बँटवारे से अधिक विस्फ़ोटक होता I अतः सच्चाई के तौर पर स्वीकारना चाहिए कि बँटवारा भारत के लिए उचित ही था I ज़िन्ना का साथ देने वाले मुसलमान भारत की आबो हवा में रहकर भी कभी हमारे देश के नहीं होते I ......खैर जो भी हो ....एक बात और ....कूटनीति के तौर पर श्रीमती गाँधी द्वारा बंगलादेश को मान्यता देकर पाकिस्तान के मुसलमानों का एक और बँटवारा किया जाना सोने पे सुहागा ही साबित हुआ है I
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