संविधान में पंथनिरपेक्षता का सन्दर्भ.... क्रिकेट में तटस्थ अम्पायरिंग की तरह नहीं लेना चाहिए .....कि'....मेज़बान देश के अम्पायर पर भरोसा नहीं है... इसलिए किसी तीसरे देश के आदमी को बुला लीजिये I.......संविधान के अंतर्गत ........सरकार सहित तमाम संवैधानिक संस्थाओं के लिए 'पंथनिरपेक्षता' की बात कही गयी है न कि संस्कृति निरपेक्षता की I.......संस्कृति एवं पन्थ में अंतर है I ..... किसी संस्कृति विशेष में कई पंथ हो सकते हैं.....परन्तु एक पंथ में कई संस्कृति ....कदापि नहीं हो सकती I ......... कहा जाता है कि ....हमारे देश में अलग अलग संस्कृति के लोग बसते हैं I ......मेरी निगाह में यह सरासर ग़लत है .....बल्कि इसे यूँ कहना चाहिए कि हमारे देश में एक ही संस्कृति के लोग अलग अलग पंथों में विभाजित हैं I ......धर्म की दृष्टि से भारत में मूल रूप से दो धड़े हैं... एक हिन्दू तो दूसरे मुसलमान I ......वास्तव में देखा जाये तो दोनों के लोग एक ही संस्कृति के होते हुए दो पंथों में विभाजित हैं I .......संस्कृति का सम्बन्ध सीधा जीवन मूल्यों से होता है I जो जीवन मूल्य हिन्दूओं के हैं वे ही थोड़ा बहुत फ़ेरबदल के साथ मुसलमानों के भी हैं I अच्छे कर्म कर स्वर्ग प्राप्ति का उद्देश्य दोनों ओर दिखाई देता है I दान कर पुण्य कमाने की बात दोनों ओर है I विवाह के माध्यम से संतानोत्पत्ति एवं वंश वृद्धि का सिद्धांत दोनों तरफ़ हैं I .......संस्कृति बेहतर जीवन को जीने की शैली का नाम है ...I क़ुरान शरीफ़, गीता, मनुस्मृति आदि में इनके रचनाकारों ने बेहतर जीवन शैली की ही बात कही है I........वक़्त के साथ कुछ तुच्छ लोग इन्हीं पंथों के ठेकेदार बनकर अपने हिसाब से लोगों को हाँकने लगते हैं ...तब सब घालमेल हो जाता है I .......भारत में संवैधानिक तौर पर कई जगह ...नीति वाक्य लिखे हुए हैं जैसे - सत्यमेव जयते. योगक्षेमम् वहाम्यहम अथवा ‘यतो धर्मस्ततो जयः आदि का सम्बन्ध संस्कृति से है न कि किसी पंथ विशेष से I गर ये हिन्दू के हैं तो इनका तर्जुमा उर्दू में कर इन्हें इस्लाम का बना दीजिये क्या कोई फर्क़ पड़ेगा ? आजकल कुछ लोग इन्हें पंथ के चश्में से देख रहे हैं ..... जो ग़लत है I .... क्या पंथ निरपेक्षता के तहत किसी तीसरे देश की संस्कृति के नीति वाक्य दीवारों पर लगाने होंगे ठीक तटस्थ अम्पायर की तरह ????