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Wednesday, October 5, 2016

पाक द्वारा "सर्जिकल" को नकारना कहीं पुनः बातचीत की कोई गुंजाइश तो नहीं .....

उड़ी में आतंकवादी घटना के बाद भारतीय सेना को सर्जिकल ऑपरेशन करना पड़ा। पाकिस्तान ने इसमें उसके हाथ होने के आरोप को नकारते हुए सर्जिकल स्ट्राइक को भी खारिच किया है । यहाँ एक सवाल उठना लाज़मी है कि.... पाक द्वारा सर्जिकल को नकारने के पीछे की रणनीति आख़िर क्या थी ? वह इसे भारतीय सेना का एक बड़ा अटैक बताकर.... अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहानुभूति बटोरकर ख़ुद के 'शांति दूत' होने का दावा भी तो कर सकता था परन्तु पाक ने इस राह पर क़दम नहीं रखा बल्कि 'सर्जिकल' जैसी बात को खारिच करने का चुनाव किया । ख़ैर..... नवाज़ शरीफ़ सरकार की कूटनीति या राजनीति.. जो भी कहें वह सर्जिकल के स्वीकारने एवं नकारने के मध्य ही कहीं अटकी हुई थी । शरीफ़ ने नकारने की राह पकड़ी .... परिणामस्वरूप सर्जिकल की सत्यता पर सन्देह भारत में भी पैदा हुआ......... नौबत सुबूतों तक पहुँच गई । जो भी हो क्या नवाज़ शरीफ सर्जिकल को स्वीकार कर कोई फ़ायदा उठा सकते थे ? इसका एक जवाब हाँ में हो सकता है। जिस प्रकार भारत में तमाम प्रकार के मीडिया पर सर्जिकल का महिमामंडन हुआ ..... पाक उसे उतना ही बड़ा सैन्य अटैक बताकर विश्व के सामने भारत को बदनाम कर सकता था जबकि उसके पास दो जवानों के मारे जाने का सच्चा बहाना भी था ।........ आख़िर शरीफ़ ने सर्जिकल को नकार कर क्या हाँसिल कर लिया ? ......... यहाँ एक बात गौर करने की है पाकिस्तान द्वारा नकारने का अपरोक्ष रूप से एक मतलब ये भी निकलता है कि जिस प्रकार हम पाक समर्थित आतंकवाद को मान्यता नहीं देते हैं उसी प्रकार पाक ने भी सर्जिकल को नकार कर भारतीय सेना को मान्यता नहीं देने की सोच जाहिर की है याने एक प्रकार से हमें हमारी ही भाषा में जवाब । ख़ैर जो भी हो......... इधर हमारे पार्ट पर भी देखें तो भारत ने केवल 'सर्जिकल स्ट्राइक' को ही अंजाम दिया है वो भी उड़ी की घटना के दबाव के चलते !.... उसे केवल आतंकवादियों तक सीमित रखा गया था चाहते तो दूर तलक जा सकते थे । ........ एक बात गौर तलब है... सियासत इधर भी है तो उधर भी है इन सबके बीच एक धुंधला सा अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि शायद पी एम मोदी की सियासत को भाँपते हुए नवाज़ शरीफ़ को ख़ुश या गलतफ़हमी हो कि भारत जल्दी ही सर्जिकल को भुलाकर फ़िर से बातचीत के लिए आगे आएगा तब नवाज़ शरीफ सर्जिकल को लेकर कोई दीवार भारत के सामने खड़ी करना नहीं चाहते ... जिस पर पाक सेना और आतंकवाद खड़ा दिखाई दे ! .....हम इतना तो समझ ही सकते हैं कि आतंकी राह पर बरसों चलने के बावजूद पाक आज तक कुछ भी हांसिल नहीं कर पाया है उसने अब ये समझ लिया है कि विश्व से अलग थलग होने पर वह दो क़दम भी आगे नहीं बढ़ सकता। वहाँ के आवाम को भी दो वक़्त की सुकून की रोटी चाहिए । कश्मीर की लड़ाई केवल कट्टरपंथी सोच से नहीं लड़ी जा सकती है.... इसीलिए कहीं कुछ ऐसा भी महसूस होता है कि नवाज़ शरीफ़ सर्जिकल को ज़्यादा हाईलाईट कर उसे कट्टरपंथियों के हाथ युद्ध का मुद्दा नहीं बनने देना चाहते हैं। वे अंदरूनी तौर पर जानते हैं कि भारत ने कोई शौकिया तौर पर सर्जिकल नहीं किया है, ये करामात वहाँ के ही आतंकवादियों की थी तो आतंकवादियों के किए का सम्पूर्ण पाकिस्तान क्यों भुगते ? सवाल नवाज़ के सामने ये जरूर रहा होगा । सर्जिकल को स्वीकारना युद्ध को न्यौता देने जैसे होता !!
धर..... प्रधानमंत्री मोदी के विदेश भ्रमण से विश्व में भारत का पक्ष पिछली सरकार के मुक़ाबले अधिक मजबूत हुआ ही है यह भी पाक समझता है । हमारी सोच क्या है ये प्रधान मंत्री श्री मोदी ने केरल के कोझिकोड के भाषण में पहले से ही पाकिस्तानी आवाम को गरीबी से लड़ने का आव्हान कर एक प्रकार से प्रकट कर दी है । ......

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