भगवान शिव को नीलकंठ भी पुकारा जाता है । समुद्रमंथन में निकले विष को शिव ने पी कर अपने कांठ में धारण कर लिया था ताकि सृष्टि में उससे कोई नुक़सान न हो । ख़ैर ये तो हुई बाहर के विष को अपने अंदर समेट लेने की पौराणिक बात !!.... परन्तु मनुष्य के भीतर जो ज़हर पैदा होकर बाहर आ रहा है उसका क्या ? ...........बस !! शिव का नीलकंठ स्वरूप इसी बात को कहता है कि अपने अन्दर जो ज़हर पैदा हो रहा है वह बाहर आने के लिए भले ही गले तक आ जाए !....... उसे गले में ही रोक लो बाहर मत आने दो । बाहर का ज़हर तो प्रकृति प्रदत्त है जिस पर तुम्हारा कोई बस नहीं परन्तु तुम्हारे अन्दर का ज़हर तो तुम्हारा ख़ुद का पैदा किया हुआ है । इस विष को तुम बाहर निकालोगे तो तुम मेरी (शिव की) बनाई सुंदर सृष्टि को नष्ट कर दोगे। इसीलिए मैं कहता हूँ कि मेरा ईश्वर कोई चमत्कार नहीं ...... सीधा सरल सा विज्ञान है । ....... पीड़ी शास्त्री
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