सियासत के आँगन में खेल रहे बच्चों में एक बालक बड़ा ही तेज़ निकला । आज वह एक नया विदेशी खिलौना ले आया । हाथों में उठा कर पूरे आँगन में दौड़म-भागी लगा रहा है ..... बाक़ी बच्चे जलन के मारे यकायक स्तब्ध खड़े उसकी कूदम-फाँदी को देख रहे हैं। .... नए खिलौने को अक्सर बालक हाथ नहीं लगाने देते हैं... वह भी हाथ नहीं लगाने दे रहा है।.बस ! दूर से देख लो । ..... "ऊँह ! मेली दादी तो ऐछे खिलोनों से तो कई बाल खेली है।" - एक नन्हा सा बालक आँगन के किनारे खड़ी माँ के आँचल की आड़ से बोला ।...... कुछ को इस नए खिलौने से कोई लेना देना ही नहीं है उनके हाथ में तो बरसों पुराना सेक्युलरता का झुनझुना जो है । एक बच्ची गोल मटोल सी तो सिर्फ जाँत-पाँत के गुड्डे गुड़िया से ही खेलती रहती है । एक दुबली-पतली सी धवल वस्त्र धारिणी अक्सर आँगन में किसी ऊँचे स्थान पर खड़े हो कमर पर हाथ धरकर बाक़ी बच्चों को अपने साथ आने के लिए गाहेबगाहे डराती रहती है पर कोई उसकी सुनता ही नहीं। खैर आँगन में खेल जारी है .... खिलौने और भी आएँगे ... आँगन के बच्चे सयाने भी हो जाएँगे । गणतन्त्र दिवस की सभी की शुभकामनाएँ ।
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