चलन को देखते हुए राजनीति एवं वैवाहिक रिसेप्शन में मुझे ज्यादा फ़र्क़ नहीं दिखता। मेहमान सजधज कर हाथों में खाली तश्तरी-चम्मच लिए ऐ-वें घूमते रहते हैं मन-पसंद भोजन की तलाश में.... जिस काउंटर पर मन आया चखा और चल दिये.... ।...... "हम राजनीति के जरिये जनता की सेवा करना चाहते थे इसलिए हमने फलाँ पार्टी ज्वाइन कर ली"... एक अच्छा बहाना है । राजनैतिक दल भी सत्ता के बैनर पर दल का केवल शाब्दिक नाम देखना चाहते हैं.... दल के रणनीतिकारों को व्यक्तियों से कोई लेनादेना नहीं.... "दूसरे के काउंटर पर तश्तरी लिए खड़ा मेहमान अपने काउंटर पर होना बस !" दल के पुराने नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की मनस्थिति घर मालिक समान.... खर्च कर, भोजन कराओ और कर्ज में डूब जाओ... ऊपर से व्यवस्था में कमी की आलोचना सो अलग। हालांकि यह बात आलोचनात्मक दृष्टिकोण से कह रहा हूँ परन्तु इसकी शुरुआत में मुझे उजाले की एक किरण नज़र आती है ....।
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