मुझे तो हाथों में हँसिया लिए खेतों में काम करने वाली प्रत्येक स्त्री में पुरुष नज़र आता है तथा ब्याह के मण्डप से बेटी के बिदाई के वक़्त रोते हुए हर बाप में कोमलांगी नारी दिखाई देती है......यही अर्द्धनारीश्वर की कल्पना है | शिव अपने में दोनों को समेटे हुए हैं ....हमारे जीवन दर्शन में देवताओं का जो स्वरूप है वह स्त्री एवं पुरुष दोनों के गुणों को समेटे हुए होता है जो लोग उन्हें अलग अलग मानते हैं उनकी सोच अधूरी है.... शिव पुरुष हैं परंतु दोनों रूप अपने में समाये हुए हैं.... शक्तिरूपा देवी जगदंबा स्त्री हैं परन्तु उसमें भी शत्रुओं के संहार की शक्ति पुरुष की शक्ति है..... पुरुष द्वारा खुद में स्त्री के गुणों की अस्वीकार्यता या स्त्री के द्वारा स्वयं में पुरुष के गुणों की स्वीकार्यता...... या जाहिर करना ये तो मात्र दिखावटी बाते हैं।..... हमारी धरा पर जब से बिदेसी संस्कृति का अतिक्रमण हुआ है तब से हमने स्त्री को पुरुष से और पुरुष को स्त्री से अलग करके देखना आरंभ कर दिया है।.... गर एक पुरुष को यह अहसास दिलाया जाए कि उसमें भी एक स्त्री समाई हुई है तो शायद बलात्कार जैसी घटनाएँ होंगी ही नहीं यही बात स्त्री पर भी लागू होती है..... हर स्त्री को यह पता हो कि उसमें भी एक पुरुष है तो स्त्री को बार बार ये कहने की जरूरत नहीं पड़ेगी कि वह पुरुष के बारबर आ गई है....या उसे समाज में पुरुषों की बराबरी करनी है।.... स्त्री एवं पुरुष को हम गृहस्थी की गाड़ी के दो पहिये कहते हैं यह धारणा उन लोगों ने बनाई है जो स्त्री एवं पुरुष को अलग करके देखते हैं यह गलत है...। जबकि वास्तविकता में गृहस्थी इस भौतिक जगत में प्रकृति प्रदत्त वो मंदिर है जिसमें शिव अपने दोनों गुणों स्त्री एवं पुरुष को पति-पत्नी याने शिव एवं पार्वती के रूप में प्रदर्शित करते हैं.... रहा गाड़ी का सवाल उसे खींचने के लिए बाहर नंदी खड़ा है न भाई ! धन्यवाद
No comments:
Post a Comment