"सत्यम् शिवम सुंदरम"......सत्यता, नित्यता एवम् सुंदरता...तीनों गुणों का योग शिव है। सत्यता की कोई व्याख्या नहीं। जो है सो है जो नहीं है वो नहीं है.…… जो नहीं है उसे "है" नहीं कहा जा सकता और जो है उसे "नहीं है" नहीं कहा जा सकता। यही सत्यता है। इसी का विपरीत करिये 'असत्य' हो जाएगा। बात बड़ी साधारण है। यही सत्यता "निरन्तर" है अगर सत्यता में निरन्तरता नहीं होती तो सत्यता 'सत्यता' नहीं रहती। सत्यता का अस्तित्व ही निरन्तरता में निहित है।निरन्तरता एवं सत्यता दोनों का स्वभाव सुन्दरम् है। जो है और जो नहीं है दोनों सुन्दर है। कर्णप्रिय गीत का बजना सुन्दर लगेगा परन्तु कर्णकटु गीत नहीं बजना ये भी तो सुन्दर है। सुंदरम का मतलब हरे नीले, रंगबिरंगे या जो मन को अच्छा लगे से बिलकुल नहीं है। मुझे जो भाए शायद आपको नहीं भाए। सवाल यहाँ आपके और मेरे भाने न भाने का नहीं है यहाँ बात उक्त तीनों गुणों के आपस में मेल का है। शिव तीनों गुणों का मिलाप हैं। जरा ध्यान दीजिये शिव भभूत धारी हैं। भभूत का सीधा मतलब है "जो अब नहीं रहा" वह भी शिव हो गया अर्थात वह (जो कोई भी ) 'था' तब भी वह सुन्दर था 'अब नहीं रहा' तब भी सुन्दर है । निरंतरता उसकी अब भी है केवल स्वरुप बदला है। शिव पर जल की धारा है जिसका बहना नित्य है। गले में सर्प है। ये सारे प्रतीक हैं जो शिव ने धारण किये हैं.। जो सत्यम शिवम् सुंदरम को प्रदर्शित करते हैं।
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