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Wednesday, February 26, 2014

लोकतन्त्र- (A short story)

शहर की मुख्य सड़क। मार्ग पर खुलने वाली हर गली के मुहाने पर डण्डे फटकारती पुलिस। फिर भी अबाध गति से लोगों का आवागमन जारी, हाँ पुलिस की टुर्र-टुर्र से थोड़ी परेशानी अवश्य। "क्या मुसीबत है ?"- एक सज्जन के मुख से निकला। सज्जन पुलिस वाले के यूँ अचानक सामने आ जाने से गिरते गिरते बचे थे। इत्ते में पुलिस के आला अधिकारियों से भरी नीली बत्ती की जीप सायरन बजाती रुकी। जीप के अन्दर से ही फटकारने की आवाज़ आई।  एक छः-सात साल का फटे कपडे पहने अधनंगा बालक अपनी माँ के मैलेकुचैले आँचल से निकल, सड़क के बीच आ गया था। पुलिस के एक जवान ने तुरन्त उसे बगल से उठा एक तरफा पटक दिया। बालक अपनी माँ के आँचल में दुबक सड़क पर हो रहे अभूतपूर्व नाटक को उत्सुकतावश देखने में व्यस्त हो गया। लगता है कोई मंत्री-वंत्री या कोई सेलिब्रिटी गुजरने वाला है। कुछ ही देर में कारों का एक काफिला सामने से गुजरने लगा। एक कार, दूसरी कार। तीसरी कार में बैठे मंत्रीजी को देख आँचल में दुबके बालक के मुख से अचानक निकला  "माँ माँ पिताजी !"……इस बार के आम चुनाव में एक दल के बड़े नेता की चली हवा मे राह चलता रामलाल भी चुनाव जीत गया था। - प्रियदर्शन शास्त्री  

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