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Thursday, February 13, 2014

वेलेंटाइन'स डे व्रत विधान -

आज वेलेंटाइन'स डे है। आज ही माघ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा भी है ऐसा संयोग सैंकड़ों वर्षों बाद आया है। इस दिन इसके होने से विधि-विधान पूर्वक "वेलेन्टाइन्स व्रत" करने से मनचाहा वर मिलता है तथा मनोकामनाएँ पूरी होती है। आइए इस व्रत के करने का विधान जाने। हालाँकि बस स्टेण्ड पर व्रतोपवास की पुस्तिका बेचने वाले के पास ऑथेन्टिक पुस्तिका लेने हम गए थे परन्तु उसने बताया कि इस बारे में सीधे सूत जी से ही पूछना पड़ेगा सो हमने ज्यों ही  वहाँ सम्पर्क किया तुरन्त आकाशवाणी हुई कि इस चेनल की सभी लाइनें व्यस्त हैं कृपया वाया नारद जी सम्पर्क करें। हमने नारद जी से प्रार्थना की तो उन्होंने बड़ी विनम्रता से सूत जी से पूछा- "हे देवो के देव ! हमें वेलेंटाइन'स दिवस व्रत के विधान की कथा एवं महिमा को विस्तारपूर्वक बताएँ" - नारद जी की व्यथा सुन सूत जी बोले- "हे ! "इधर की उधर" करने में माहिर देव ! जरा ध्यानपूर्वक सुनों" - 
         इस दिवस का चलन कलयुग में हुआ है चूँकि शास्त्रों की रचना सतयुग में ही कम्प्लीट हो चुकी थी इस कारण व्रत को करने की कोई विशेष प्रक्रिया निर्धारित नहीं हो पाई है। हाँ.…… १८ वर्ष से ऊपर की वय के अपनी इच्छानुसार इस व्रत को कर सकते हैं। फिर भी संक्षेप में इस व्रत की कथा एवं विधान आपको बताता हूँ। सुनिये - "प्राचीन समय में इण्डिया नामक देश की दक्षिण दिशा में वालन्ता नामक महान ऋषि हुए थे। वे प्रेम शास्त्र के बड़े ज्ञाता थे। प्रेम के अलग अलग तरीक़ों की खोज करना उनका पेशन था इसलिए वे देश की भिन्न भिन्न नदियों के तट पर तप करने जाया करते थे। एक बार वे कलयुग में करने योग्य प्रेम की खोज में नित्यकर्म से निपट, नहा धोकर गँगा के तट पर तपस्या करने बैठ गए। जिस स्थान पर वे बैठे थे उसी स्थान पर दो किशोर वय छोरे -छोरी विद्यालय से बँक मार कर प्रेमालाप करने अक्सर आया करते थे। उस दिन भी माघ मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा थी। ठण्डी ठण्डी बयार चल रही थी। दुनियाँ से बेखबर, गँगा के तट पर बैठे, पानी में जिनके पैरों के डुलाने से छपक छपक की मधुर ध्वनि आ रही हो तथा जिनके बस्ते इधर उधर पड़े हों ऐसे दो छोरे -छोरियों को निश्छल, निस्वार्थ प्रेमालाप करते देख वालन्ता ऋषि का मन भर गया। उन्हें अपने प्रेम की सम्पूर्ण खोजें व्यर्थ लगने लगीं। उन्हें लगा कि इस देश के नर-नारी को अब उनकी आवश्यकता नहीं है अतः तपस्या को अधूरी छोड़ वे तुरंत दक्षिण के बजाय सीधे हिमालय को फलाँगते हुए रोम देश की तरफ चले गए। बाद में वहाँ सेन्ट वेलेंटाइन्स नाम से प्रसिद्ध हो हुए। उन्होंने वहाँ देखा कि सेना के कुछ जवानों पर विवाह का प्रतिबन्ध है। इस बात से व्यथित हो उनकी उन्होंने शादी रचा डाली। ये बात रोमन साम्राज्य को पसंद नहीं आई इस कारण उन्हें कारागार में डाल दिया गया। जिस दिन उन्हें कारागार में डाला गया वो १४ फरवरी का दिन था। उन्हीं की याद में "गृहस्थी" रूपी कारागार में सज़ा पाने के इच्छुक युवा  सवेरे जल्दी उठ नहा-धोकर, डीयो-वियो छिड़क, पेट्रोल चालित द्विचक्रिका वाहनों पर तीन तीन सवार हो, हाथों में गुलाब लिए गलियों में धूं धूं कर मारे मारे अपनी साथिन की तलाश में घूमते फिरते हैं। उन्हें कोई मिले न मिले परन्तु इस व्रत के करने से गुलाब की बिक्री बढती है। एक दूसरे को सन्देस भेजने से मोबाईल कंपनियों की जेबें भरती जाती हैं। ऐसे कई काम हैं जो इस दिवस पर होते  हैं.....खैर इस व्रत को जिन जिन लोगों ने किया उनके बारे में बताता हूँ। सबसे पहले हीर-राँझे ने इसको किया था। इस व्रत के करने से वे रीति रिवाज़ पूर्वक विवाह के बंधन में बंध गए थे।  तत्पश्चात इस विवाह से उन्हें चार -छह सन्ताने हुई। बाद में उनका जो हश्र हुआ उसे देख आज तलक़ उनके वंशज कुंवारे ही घूम रहे हैं। परन्तु इसमें उनका क्या दोष प्रभु ने उन्हें स्वर्ग में स्थान दिया। जो इस व्रत को विधि विधान पूर्वक करेंगे वे इस घोर कलयुग में भी स्वर्ग में हीर-राँझा के पड़ौस में स्थान पाएंगे। …धन्यवाद  (नोट:- यह कथा केवल एक व्यंग मात्र है ) 

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