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Saturday, January 18, 2014

गंजों का शहर, कँघी, बेचना एवं विपक्ष

      गंजों का शहर, कँघी, बेचना एवं विपक्ष। राहुल गांधी ने सही कहा बल्कि यूँ कहूँ कि वे आजकल भाषण बड़े सटीक देने लगे हैं। जन्म होता है, सर पर बाल होते हैं, धीरे धीरे उम्र दराजी के साथ बाल झड़ने लगते हैं; ये प्रक्रिया प्राकृतिक है परन्तु परिस्थितियोँ की मार से भी आदमी गंजे होने लगता है ये बात असामान्य है।     
     १५ अगस्त सन १९४७ को देश का पुनर्जन्म हुआ। देश के सर पर प्राकृतिक सम्पदा के काले घने-घुँघराले बाल लहराते थे। देश जवाँ हुआ। जन्म से लेकर आजतक परिस्थितियाँ ऐसी खड़ी की गईं कि देश के सर के बाल झड़ते चले गए। किसी ने नहीं सोचा कि देश गंजा होता चला जा रहा है। ख़ैर बात राहुल की हो रही थी। एक बात समझ में नहीं आई। राहुल के भाषण की स्क्रिप्ट लिखता कौन है ? जो लिखा गया है उसे राहुल समझते भी हैं कि नहीं ? अगर समझते हैं तो उन्हें खरी बात कहने के लिए साधुवाद परन्तु नहीं समझते हैं तो बात दूसरी हो जाती है। देश को गंजा करने में सबसे बड़ा हाथ तो सरकारों का रहा है और कहने कि जरूरत नहीं कि आजादी से लेकर अब तक अधिकतर सत्तारूढ़ पार्टी कौनसी रही है। आज राहुल अपनी पार्टी के एक प्रकार से नवेले युवा सदस्य हैं। राजनैतिक एवं पारिवारिक स्तर की ऊँचाइयों पर चढ़े उन्हें सारा देश गंजा ही नजर आ रहा है। देश को गंजा किसने किया उससे उन्हें क्या सरोकार। गंजे सर पर जब फिसलन होने लगी तो अहसास होने लगा कि देश वाकई गंजा हो चुका है और बेचारे विपक्ष को मजबूरी में कँघी बेचने का काम करना पड़ रहा है। धन्यवाद।

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