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Sunday, December 22, 2013

"गुरू, माँ, बेटा और चेला"

अख़बार के मुताबिक दिल्ली मे सरकार बनना लगभग तय हो गया है। जनता ने भी आधा अधूरा काम किया।अरविन्द भाई काँग्रेस से सब गुर सीख लेंगे। गुर भी कौनसे, जिनसे परेशान हो जनता ने काँग्रेस से सत्ता छीन थी। खैर इस दृष्टिकोण से काँग्रेस अरविन्द भाई की गुरू कही जाएगी। एक बात याद रखने की है, हमारे देश में चेला हमेशा शक्कर बन जाता है। देश की धड़कन दिल्ली अब गुरू, 'माँ-बेटे' एवं चेले के भरोसे हो जाएगी। देश में एक नए प्रकार का गठबन्धन देखने को मिलेगा "गुरू, माँ, बेटा और चेला।" दिल्ली की जनता को अब अधिक डर लगेगा क्योंकि 'माँ' के हाथ में झाड़ू है, 'बेटे' को डराने के लिए नहीं बल्कि उन लोगों को जिन्होंने 'चेले' को पैदा किया। इधर गुरू गुर तो सिखा देगा परन्तु चेला खुद की झाड़ू से माँ के हाथों पिटता रहेगा और बेटा लॉलीपाप मुँह में दबाए पल्लू के पीछे से सब कुछ देखता रहेगा। ये है हमारे देश का लोकतंत्र।  धन्यवाद। 

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