यौन अपराध, पीडिता एवम् अपराधी, तीनों हमारे देश में एक तमाशे की तरह है। जब भी कोई यौन अपराध होता है, मीडिया एवम् समाज दोनों के लिए एक चटखारे वाली बात बन जाता है और अधिक आनन्दायी तब हो जाता है जब अपराधी कोई बड़ा व्यक्ति हो। भारत में यौन अपराधों की परिभाषाएँ बड़ी ही सरल हैं। सरल इस दृष्टिकोण से है कि हत्या के अपराध में एक व्यक्ति को जान से मारना पड़ता है, चोरी में किसी के घर में घुस कर धन चुराना पड़ता है, अपहरण में किसी का अपहरण कर फिरौती माँगनी पड़ती है परन्तु यौन अपराध में चार लोग मिल कर किसी भी व्यक्ति को इस अपराध में अपराधी बना सकते हैं। एक सज्जन हैं उनका प्रमोशन आदिवासी बेल्ट के एक गाँव के बालिका विद्यालय के प्रिंसिपल के पद पर हो गया। वे विद्यालय जाने से डरते हैं उनका कहना है कि ऐसा-वैसा आरोप कब लग जाए, कोई भरोसा नहीं ! मीडिया एवं समाज तो तमाशा बना देगा। बात बापू आसारामजी की करते हैं। बापू के साथ जो हो रहा है उससे कुछ सवाल उठते हैं- क्या हर आदमी भरोसे के लायक नहीं रहा ? क्या एक व्यक्ति बापू जैसे मक़ाम पर पहुँचने के बाद भी इन्सानी कमजोरियों का शिकार हो जाता है ? क्या समाज के छोटे तबके के लोगों को इन बड़े लोगों से दूरी बनाए रखनी चाहिए ? कहीं धन-वैभव को पाने के चक्कर में पीडिताएँ तंत्र-मन्त्र के जाल में तो नहीं स्वयं को फँसा लेती हैं ? ऐसे कई सवाल हैं। बापू के साथ क्या हुआ है वो तो कोई नहीं जनता परन्तु देश के मीडिया एवं लोगों एक चटखारे वाली बात और मिल गई। धन्यवाद ।
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