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Monday, August 12, 2013

लँगोटी

"भागते भूत की लँगोटी ही सही।" लँगोटी भी भूत की वो भी भागता हुआ। कभी किसी ने सोचा है ऐसा क्यों। हम ठहरे विचारक। विचारने को बस कुछ भी मिल जाए तुरन्त विचारने लग जाते हैं। इसी बात पर ध्यान चला गया।  हमारे देश में "भविष्य" बड़ा ही सुनहरा होता है ऐसा किताबों में पढ़ा है, बड़े बुजुर्गों के मुँह से भी सुना है। बचपन में मेरे बारे में घर के बुजुर्ग कहते थे अरे ! इसका भविष्य तो बड़ा ही उज्ज्वल है। भविष्य ऐसा उज्ज्वल हुआ कि ९०/- किलो टमाटर खाने की नौबत आ गई। खैर, ये तो बात हुई भविष्य की। अब बात आती है वर्तमान की। क्या कहें सभी के सामने है कुछ कहने की जरूरत नहीं। अब बारी है भूत की। मेरी बात पर गौर करियेगा कि जिस देश में "भविष्य" सुनहरा तो है पर कभी आता नहीं, वर्तमान है पर अत्यंत बिगड़ा हुआ, बचा बेचारा "भूत" बदन पर सिर्फ लँगोटी लिए नंगा, एक पल भी रुकना नहीं चाहता, भाग जाने में ही भलाई समझता है। हम हैं कि बिगड़े वर्तमान में भी "भूत" की अच्छी यादों को समेटकर भविष्य को चमकाने का प्रयास करते रहते हैं परन्तु भूत तो भूत है, भाग ही जाता है बचती है तो सिर्फ उसकी लँगोटी। धन्यवाद। -प्रियदर्शन शास्त्री  

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