एक गाँव था। गाँव बड़ा ही सुन्दर था। गाँव के मध्य एक बहुत बड़ा छायादार वृक्ष था जिसके नीचे गांववालों ने एक चबूतरा बना रखा था। वृक्ष की ठंडी छांह में गाँव वाले अक़्सर बैठा करते थे। गाँव जिस सल्तनत का था वहाँ के सुल्तान को विकास करने का बड़ा चस्का था। उसकी सल्तनत में कई प्रकार के विकास कार्य किये जा चुके थे। एक बार सुल्तान के दरबार में विदेशी कंपनी के नुमाइन्दे आए उन्होंने सुल्तान को गर्मी से निज़ात पाने की एक बड़ी सुन्दर सी मशीन भेंट की। उस मशीन ने पूरे महल में चंद मिनिटों में ठंडक फैला दी। सुल्तान उस नायाब मशीन को पाकर बड़ा खुश हुआ। उसने ऐसी बहुत सी मशीनों को पूरी हकूमत में लगाने का फरमान जारी कर दिया। उस गाँव में भी ठंडक फ़ैलाने वाली मशीनें लगवाई जाने लगीं परन्तु गाँव के कच्चे घरों एवं छप्परों के कारण मशीनें कामयाब न हो सकीं। गाँव वालों ने मशीने लगाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। बात सुल्तान तक पहुंची। उसे बड़ा गुस्सा आया एवं अचरज भी हुआ। उसे तो विकास का नशा था। उसने अपने दरबार के एक बुद्धिमान मंत्री को जाँच के लिए आयोग बनाने का कहा। आयोग को गाँव भेजा गया। आयोग के आला सदस्यों ने गाँव एवं गाँव वालों के रहन-सहन एवं आर्थिक स्थिति का बड़ा बारीकी से अध्ययन किया। आयोग ने देखा कि गाँव के लोग उस पेड़ के नीचे गर्मी में अक्सर बैठे रहते हैं। उसे सब कुछ समझ में आ गया था। वह अगले ही दिन दरबार में पहुंचा और उसने अपनी रिपोर्ट के अंत में सिफारिश की कि "गाँव के मध्य जो पेड़ है वह विकास में बाधक हैं अतः उसे तुरंत काटा जाए।" -प्रियदर्शन शास्त्री
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