आज एक मंदिर गया था। दर्शन करता तभी एक सज्जन मुझे पीछे धकेल पहले भगवान के आगे हाथ जोड़े खड़े हो गए। हाँलाकि मंदिर में उनके सिवा केवल मैं ही था। मुझे लगा शायद उन्हें जल्दी होगी। खैर, सज्जन ने अपनी डिमाण्ड की लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त प्रभु के सामने रख दी। मैं दर्शन करना भूल उन्हें ही ताकने में व्यस्त हो गया। सज्जन की फेहरिस्त ज्योंही ख़त्म हुई मंदिर में बड़ी जोर की गडगडाहट होने लगी। मैं एकबारगी तो घबरा ही गया, इतने में क्या देखता हूँ कि प्रभु साक्षात् सामने खड़े गुस्से से थरथरा रहे हैं। सोचा हमसे कोई गलती हो गई क्या ? अपने आप को चेक किया; अगरबत्ती, नारियल, फूलमाला, पाँच का सिक्का सब कुछ तो था। और तो और सुबह स्नान भी किया था। खयाल आया शायद इन सज्जन से ही कोई गड़बड़ हुई है। मैं चुपचाप एक तरफ खड़ा हो गया। प्रभु जोर-जोर से सज्जन पर चिल्लाने लगे। "शर्म आती है तुम्हें चले आते हो रोज कुछ न कुछ माँगने। अरे भाई हमने तुम्हें एक बार धरती पर भेज दिया बस हमारा काम ख़त्म। अपने व्यवहार, चालचलन, लगन, ईमानदारी, मेहनत आदि से कर्म करो। जैसा कर्म करोगे वैसा फल पाओगे। हर वक्त "प्रभु ! ये दे दो..... "प्रभु ! वो दे दो। कभी तुमने मुझे किसी को कुछ देते हुए देखा है ? नहीं ना। तो फिर मुझसे क्यों माँगते हो .......मैं किसी को कुछ नहीं देता। सब कुछ तुम्हारा ही कमाया हुआ है।"........ "भगवन ! जो कुछ हम कमाते हैं वो भी तो आपकी प्रेरणा से ही होता है।" हमने बीच बचाव कर समझदारी दिखाने की कोशिश की। प्रभु ने हमारी ओर गर्दन घुमाकर कहा "तुम चुप रहो। तुम्हें बोला बीच में बोलने के लिए ? और ये ....ये ....नारियल- अगरबत्ती लाने का किसने कहा तुम्हें ? किसी भी मंदिर में किसी भी देवता ने कभी तुम्हें नारियल-अगरबत्ती लाने का नहीं कहा होगा।" हमने हाँमी में अपनी गर्दन हिला दी। भगवान के आगे कर भी क्या सकते थे। खैर, प्रभु जब थोड़े शान्त हुए तो हमने बड़ी विनम्रता से पूछा "हे प्रभु ! ऐसे तो हम आपसे एकदम कट जाएँगे, कनेक्टिविटी बिलकुल ही ख़त्म हो जाएगी ?" प्रभु हमारी बात सुनकर बोले- "चौराहे पर भिखारी कैसे, रुकते ही घेर लेते हैं; मुझे तो तुम सब लोग वैसे ही दिखाई देते हो। कोई भिखारी रोज तुमसे माँगे तो क्या तुम्हारी उससे कनेक्टिविटी हो गई ? नहीं न।"...... देखो समझो !, प्रभु आगे बोले- तुमने कभी बच्चों की चित्रकला प्रतियोगिता देखी है ? आयोजक एक ग्राउंड में सब बच्चों को कागज, कलर, पेन्सिल, रबर आदि देकर एक बार भेज देता है। अब बच्चों की बारी होती है पेंटिंग बनाने की। जिसकी जैसी पेंटिग वैसा उसका ईनाम। जब पेन्टिंग कम्पलीट हो जाती है तब ही आयोजक बच्चों के पास जाता है ठीक उसी तरह तुम्हारी पेन्टिंग जब कम्पलीट हो जाएगी तब मैं अपने आप तुम्हारे पास आ जाऊँगा। रही मुझसे कनेक्टिविटी की बात वो तो निरंतर बनी रहती है। इसलिए मेरे पास बार बार आने के बजाय अपनी अपनी पेन्टिग पूरी करो।"............ ऐसा कहकर प्रभु अंतरध्यान हो गए। हम ईश्वर की बात समझ गए थे । धन्यवाद।
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