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Monday, April 8, 2013

गले का पट्टा

एक श्वान था। एक बार किसी ने उसके गले में पट्टा बाँध दिया। वह बहुत छटपटाया। लाख कोशिशों के बावजूद गले में पड़े उस पट्टे को वह निकाल नहीं पाया। वह परेशान रहने लगा। आज़ाद रहने वाले के गले में बंधन? बर्दाश्त से बाहर था परन्तु न निकाल पाने का दर्द भी था। श्वान इंसानों की बस्ती में रहता था। एकदिन वह उदास बैठा कुछ सोच रहा था कि अचानक उसकी निगाह एक आदमी के गले में बँधे पट्टे जैसी चीज़ पर पड़ी। उसने उस आदमी से पूछा- भाई साहब! आपके गले में ये क्या बंधा है ? क्या आपको इससे परेशानी नहीं होती ? आदमी बोला- हे श्वान राज ! तुम नहीं समझ पाओगे। जिस पट्टे से तुम परेशान हो, हम इन्सान उस पट्टे को बाँधने में अपनी शान समझते हैं। पट्टा बांधने के बाद वह हाई सोसाइटी का माना जाता है। बिना पट्टे बंधे इंसान पर पट्टे बंधे का रोब पड़ता है और तो और ग्रामीण जन तो इन पट्टे बंधे आदमियों के बीच जंगली एवं गँवार समझा जाता है। इस पट्टे को हमारे देश में कोई नहीं जानता था वो तो अंग्रेज आए और उन्होंने हमारे गले में बाँध दिए वरना हम तो गंवार के गंवार ही रह जाते। अफ़सोस इस बात का रहा कि कुछ सिरफिरे लोग जिन्हें देशभक्त कहते हैं एवं एक लंगोटी धारी ने अंग्रेजों को देश से निकाल भगाया। आदमी ने अपने गले में बंधे पट्टे को प्यार से सहलाते हुए कहा- पता है तुम्हें ? आज भी हम उन अंग्रेजों की याद में इस पट्टे को गले में बांधे घूम रहे हैं। "और खबरदार ! इसे तुमने बार बार पट्टा जो कहा। इसे हम सम्मान से टाई कहते हैं। श्वान बड़े ध्यान से आदमी की बात सुन रहा था। उसने पूछा - भाई साहब मेरे गले में जो पट्टा पड़ा है उसका क्या ? आदमी बोला - तुम खामखाँ परेशान हो रहे हो। पट्टे बाँधने से तुम अब पालतू कहलाओगे और किसी पट्टे बंधे इंसान का वरदहस्त  तुम्हारे सर पर पड़ गया तो तुम्हारे वारे-न्यारे हो जाएंगे। हमको देखो सभी पट्टे बंधे इंसानों को, जिंदगी के ठाठ हैं। हालाँकि शुरू में इस पट्टे को बांधने में परेशानी होती है उसके लिए हम हमारे छोटे छोटे बच्चों को आरम्भ से ही गले में पट्टा बाँध कर विद्यालय भेजते हैं ताकि बचपन से ही आदत हो जाए। आदमी की सम्पूर्ण कथा सुनने के बाद श्वान गुर्राकर बोला- तुम्हारा ठाठ तुम्हीं को मुबारक। मुझे नहीं बांधना ये गुलामी का पट्टा। श्वान ने आगे कहा- हो सके तो एक मेहरबानी करो मुझ पर। मेरे गले का पट्टा निकाल दो। आदमी गुस्से से बोला - पगलाय गए हो क्या ? तुम्हारे गले का पट्टा निकालने के लिए मुझे लंगोटी लगानी पड़ेगी। पता है जिसके गले में एक बार ये पट्टा पड़ जाए वह मुश्किल से लं
गोटी पहन पता है। -प्रियदर्शन शास्त्री 

1 comment:

  1. श्वान को गले के पट्टे का अर्थ बहुत ही सुंदर ढंग से बताया सर । पर अफ़सोस वो तो उस पट्टे को निकालना चाहता है अर्थात श्वान हमसे आपसे ज्यादा स्वाभिमानी निकला ।

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