देश का ८०% भाग ग्रामीण है। यही ग्रामीण भाग पूरे देश के पेट को भरने के लिए अनाज, फल-सब्जी आदि उगाता है। अब हमारे आर. बी. आई. के गवर्नर साहब का कहना है कि पिछले पाँच बरसों में ग्रामीणों की आय में बढ़ोत्तरी होने से वे प्रोटीन युक्त खाना खाने लग गए हैं इस वजह से देश में महँगाई बढ़ी है। गवर्नर साहब ने एकदम सही कहा है उनके अनुसार पहले तक देश का अस्सी प्रतिशत भाग उगाता था और बाकी का बीस प्रतिशत भाग बड़े मज़े से सस्ते में खाता था। अब बात बदल गई है अस्सी प्रतिशत भी खाने लग गया है इस लिए खाने-पीने के भाव बढ़ गए हैं। गवर्नर साहब के बयां ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि एयर-कंडीशन सेल में बैठने वालों को पता ही नहीं है कि असल ग्रामीण भारत क्या है और कहाँ है। उन्हें पता ही नहीं है कि यही ग्रामीण भारत देश की आर्थिक मजबूती की रीढ़ है। नेता लोग अक्सर साम्प्रदायिकता, राजनैतिकता एवं धर्म के आधार पर देश को बांटने की बात कर दिया करते हैं मैं कहता हूँ गर हिम्मत है तो देश में से ग्रामीण भारत को अलग कर के देखो, आटे- दाल के लाले पड़ जाएँगे। आज बंद कमरों में, कागज़ के टुकड़ों पर आकड़ों के खेल को देश का आर्थिक विकास समझा जाने लगा है ऐसे में असल धरती के खिलाडी जो खून-पसीने से सींच कर कृषि उद्यम के ज़रिये लाखो टन का उत्पादन हर साल देश को देते हैं; दौड़ में पिछड़ गए हैं। एयर-कंडीशन सेल में बैठकर केवल एयर कंडीशन वालों के बारे में ही सोचा जाता है। फ़ोर्ब्स मैगज़ीन में छपने वाले रिचेस्ट मेन अम्बानी बन्धु भी ऐसे धरती के खिलाडियों के मुकाबले कहीं नहीं टिकते। २६ /- प्रतिदिन गरीबों के खाने के लिए पर्याप्त होने वाली बात भी आपको याद होगी तो गवर्नर साहब को खाना कब से महँगा लगाने लग गया ? बाते हमारी समझ से तो परे हैं। सीधी सी गणित है अगर देश का असल विकास करना है तो ग्रामीण भारत अर्थात कृषि का विकास करना चाहिए। जितना अधिक कृषि उत्पादन होगा उतना अधिक देश विश्व पर राज़ करेगा परन्तु उसके लिए बंद वातानुकूलित कमरों से निकल कर कड़ी धूप में आना पड़ेगा। धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment