भारत एक विशाल देश है। इसकी अपनी गरिमा है। इसी गरिमा के परिप्रेक्ष्य में देश के प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व को देखा जाता है। देश में लोकतंत्र है, दलगत राजनीति है। हर दल के आला नेताओं के दिमाग में प्रधानमंत्री बनने की तिकड़म किसी कोने में कहीं न कहीं पनप रही होती है। इंतजार होता है तो बस एक अदद सही अवसर का। मैं बात कर रहा हूँ प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व की। हमारे देश में कांग्रेस एवं भाजपा दो ही बड़े राष्ट्रिय स्तर के राजनैतिक दल हैं। कांग्रेस पार्टी एक ही परिवार के नेतृत्व में अपने आपको अनुशासित समझती है इसलिए प्रधानमंत्री पद पर कौन आसीन होगा, पार्टी स्तर पर तय होने में ज्यादा परेशानी नहीं होती है। ऐसे में प्रधानमंत्री का व्यक्तित्व गौण हो जाता है। भाजपा हालाँकि परिवारवादी नहीं है परन्तु दल की कार्यप्रणाली दल के आला नेताओं की व्यक्तिगत छवि एवं प्रभाव से प्रभावित होए बिना नहीं रहती है। ऐसे में हर प्रभावशाली नेता अपने आपको प्रधानमंत्री पद की दावेदारी का अधिकारी समझता है। जहाँ तक छोटे राजनैतिक दलों की बात करें तो उनके आला नेताओं की आईडीयोलोजी बड़ी सीमित होती है। उनका प्रभाव केवल उनके इलाके एवं नेताओं तक सीमित होता है। लोकतंत्र में आप किसी को ये नहीं कह सकते कि भाई आप प्रधानमंत्री पद के लायक नहीं है। आपसे वह तुरंत पूछेगा "हम में ऐसी क्या कमी है जो प्रधानमंत्री नहीं बन सकते?"
आज राजनीति में नकारात्मकता का दौर चल रहा है। दल कोई सा भी हो सब में कमोबेश एक से हालत हैं। जो नेता ईमानदार, कर्मठ एवं देश के प्रति निष्ठावान है वे दल के अन्दर दरकिनार कर दिए जाते हैं। आज विश्व के विशालतम लोकतंत्र के कमज़ोर प्रधानमंत्री को देख कर बड़ा अफ़सोस होता है। आज की राजनीति में राष्ट्रिय स्तर के व्यक्तित्वों की कमी नज़र आती है। फिर आप राष्ट्रिय स्तर के किसी प्रभावशाली व्यक्ति को प्रधानमंत्री के पद पर आसीन होते नहीं देख सकते हैं।
देश की जनता आजादी के बाद बहुत आगे बढ़ चुकी है परन्तु आज भी साम्प्रदायिकता की बात कर मुसलमानों का अलग वोट बैंक दिखाकर राजनीति करना राजनैतिक दलों को शोभा नहीं देता। मुझे किशोर दा का एक गीत याद आ जाता है "ये जो पब्लिक है सब जानती है .... ये जो पब्लिक है।" धन्यवाद।
No comments:
Post a Comment