क्रिस गेल साहब ने मात्र ३० गेंदों में शतक ठोक कर कमाल कर दिया। जब रन बन रहे थे तब ऐसा जान पड़ रहा था मानों हमारे घर के आँगन में ब्याह मंडा हो और बड़े शहर से आया हलवाई लड्डुओं के लिए दनादन बुंदियाँ तल रहा हो और तलन की महक पूरे गाँव को आबाद किये दे रही हो। हर चौके एवं छक्के पर उछलती चीयर गर्ल्स मानों प्रतीत हो रही थी जैसे कड़ाही के आसपास छन्न की आवाज़ पर किलकारियां भरते बच्चे उछल-कूद कर रहे हों। गाँव के हलवाई में वो बात कहाँ ? वैसे हमारे वीरू दादा भी कम नहीं हैं साल-छ: महीने में कुछ न कुछ कर ही देते हैं। अब टीवी वालों को देखिये; बैठ गए क्रिकेट की बारीक से बारीक तुरपाई उधेड़ने। हमने धोनी साहब से पूछा है कि क्रिकेट की गेंद में कितने टाँके होते हैं, आज तक जवाब नहीं आया जबकि टांके कितने होते हैं टीवी वालों को मालूम है। एक बार वीरू दादा क्लीन बोल्ड हो गए। एक दरजी को पकड़ लाए कि इसने बॉल में सही टाँके नहीं लगाए इसलिए वे बोल्ड हो गए। खैर क्रिकेट है ही अनिश्चितताओं का खेल। हमारी बूढी अम्मा टीवी पर हाकी मैच देख रही थीं। हमने पूछा अम्मा क्या देख रही हो ? अम्मा बोली बेटा क्रिकेटवा देख रहे हैं। हमने कहा अम्मा ये क्रिकेटवा नहीं है ई तो हाकी है। अम्मा बोली- हम कोई खेल थोड़े ना देख रहे हैं हम तो गेंद की सुन्दर तुरपाई को देख रहे हैं। अम्मा की बात सुन हम चकरा गए। छोड़ो भी अम्मा को क्या फर्क पड़ता है। हाकी भी कोई खेल है। एक मुड़े हुए डंडे से गेन्द को एक दूसरे के पाले ले दौड़ते फिरते हैं। इससे अच्छा तो हमारे नेता हैं जो बड़ी तरकीब से दूसरे के पाले में गेंद डाल देते हैं। कभी गेंद भाजपा के पाले में तो कभी कांग्रेस के पाले में नज़र आती है। दिल्ली में ही लीजिये बलात्कार पे बलात्कार हो रहे हैं और शीला जी ने गेन्द पुलिस के पाले में डाल दी। हमारा दिमाग गेद और पाले के बीच शटलकाक बन जाता इतने में अम्मा के जोर से ताली बजाने की आवाज़ आई। हमने पूछा अम्मा ! क्या हुआ ? बेटा ! मैच ख़त्म हो गया। "तो इसमें ताली बजाने वाली क्या बात है ?" हमने सवाल किया। अम्मा बोली "बेटा ! मैच तो ख़त्म हो गया पर गेंद का एक भी टांका नहीं टूटा। हमारे देश के नेता भी मुद्दों की गेंद से हाकी खेलते हैं बेटा ! पर वो तो टाँके इतने मजबूत हैं कि मुद्दा किसी के भी पाले में चला जाए पर टाँके नहीं टूटते। हमने हाकी को राष्टीय खेल यूँ ही नहीं बनाया है।" धन्यवाद ।- प्रियदर्शन शास्त्री
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