अंधेरे को अभी कुछ और घुप्प होने तो दो ज़रा,
फिर इक नया सूरज निकलेगा।
हवाओं को आँधियाँ बनने तो दो ज़रा,
फिर इक दिया जल निकलेगा।
तुम तो तूफ़ां के पहले, सन्नाटे से घबरा गए....
अरे ! उसे आने तो दो ज़रा,
फिर से कोई तो..........बच निकलेगा।
- प्रियदर्शन शास्त्री
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