भाई ! ये कैसा सेक्युलरिस्म है ? जो राजनैतिक दल साफ़तौर पर जाती एवम् धर्म के नाम पर अपना चुनावी आधार रखते है तथा सत्ता में आने की कोशिश करते हैं वे अपने आपको सेक्युलर कहते हैं। मुझे तो एक भी राजनैतिक दल ऐसा नज़र नहीं आता जो जातीय समीकरण के आधार पर वोट बैंक की राजनीति नहीं करता। हर राजनैतिक दल ने कोई न कोई जाती या धर्म के लोगों को वोट बैंक के रूप में पकड़ रखा है। तिस पर बड़े ज़ोर शोर से दावा किया जाता है कि उनके जैसा दूसरा कोई सेक्युलर नहीं है। आजकल जे डी यू के नेता नितीश कुमार जी सेक्युलर होने का दावा कर रहे हैं। मैं तो कहूँ क्या नितीश कुमार जी जातीय आधार पर अपने चुनावी समीकरण नहीं बैठाएँगे ? जनता भी समझती है कि जितने भी छोटे दल हैं वे जातीय आधार की राजनीति पर ही टिके हुए हैं। जब खुले आम जातीय राजनीति ही की जानी है तो अपने आप को सेक्युलर क्यों कहना ? स्वर्गीय श्रीमती इंदिरा गाँधी ने देश की राजनीति में सबसे पहले सेक्युलर शब्द का इस्तेमाल किया; आज उसका जम कर उपयोग किया जा रहा है। शब्द के अर्थ से किसी को कोई लेना देना नहीं है। इंदिरा जी से पहले सेक्युलर क्या बला है हमारे नेताओं को शायद पता ही नहीं था। अरे भाई जनता तो जातपाँत भूल कर आगे बढ़ती जा रही है और हमारे नेता आज भी सेक्युलारिस्म का ढिंढोरा पीटे जा रहे हैं। फेसबुक पर भी अलग राजनैतिक दलों के कई समर्थक हैं क्या वे भी जातीय आधार पर अपनी फ्रेंड लिस्ट बनाए बैठे हैं ? मुझे तो एक शेर याद आ रहा है ..........मय को क्या लेना तेरी ज़ात से,
उसे तो बिकना है और तुझे बस पीना है -प्रियदर्शन शास्त्री
नेता बदबू देता
ReplyDeleteसारी जग ke आँख के न्यारे
ये वो गंदे पूत हैं जिनको
भारत माँ धिक्कारे ।
........किसी पुराने कवि की पंक्तियाँ हैं .....