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Saturday, February 23, 2013

"रॉ मटिरियल"

क्या महिला एवं पुरुष आपस में मित्र हो सकते हैं ? एक सवाल अक्सर उठता है। मेरी राय में महिला एवम् पुरुष मित्र हो सकते हैं बल्कि मैं तो कहूँगा- हैं, परंतु हमारा समाज इस मित्रता को स्वीकार नहीं करता है। इसका मुख्य कारण हमारी पुरातन सोच, जिसमें केवल वैवाहिक सम्बंधों में ही स्त्री एवम् पुरुष को एक दूसरे के करीब होना स्वीकार किया है। इस सोच का अर्थ ये निकला कि एक स्त्री-पुरुष आपस में केवल वैवाहिक संबंध के ज़रिये ही नज़दीक आ सकते हैं अन्यथा नहीं। जहाँ तक जो स्त्रियाँ पुरुषों के करीब हैं उनको हमने स्त्रियाँ न मान कर मां, पत्नी, बहन, काकी, मामी आदि संबंधों के रूप में देखा है। ऐसे में मुझे महसूस होता है कि हमारे समाज ने स्त्रियों को कभी स्त्री माना ही नहीं है। हमारी पुरातन सोच ने स्त्री को स्त्री पुकारा ही नहीं है उसने तो कभी उसे पत्नी, कभी मां तो कभी बहन कहा है। एक मजेदार बात और हुई। हमारे समाज ने मां, बहन, पत्नी आदि रिश्तों  के गढ़ने के "रॉ मटिरियल" के रूप में बेटियों का उपयोग किया है। मेरी बात में ये कड़वा सच है। इसी सोच के रहते हमारे देश में कन्या भ्रूण हत्याएं होती है। बेटियों का दर्ज़ा निम्न है। आपने भी अक्सर सुना होगा कि "अरे बेटी है साहब उसे तो पराए घर जाना है।" अर्थात वही बात कि बेटी तो रॉ मटिरियल है उसे तो आगे जाकर पत्नी तथा माँ बनना ही है, पढलिख कर क्या करेगी ? ये है हमारे समाज की घृणित सोच। ऐसी सोच के बीच रहते एक स्त्री को केवल स्त्री के रूप में अपने आप को स्थापित करना उसका असल विकास है। पुरुषों द्वारा किए जाने वाले कार्यों के कर लेने से महिलाओं का विकास हो गया ऐसा सोचना मेरी राय में उचित नहीं है ऐसा कहने से तो ये इंगित होता है कि हमारे देश की महिलाएँ मानसिक स्तर से पुरुषों से कम हैं जबकि ये बात सरासर ग़लत है। हमारे देश में महिलाएँ उन सभी स्किलफ़ुल कार्य करने में माहिर हैं जो पुरुष करते हैं बशर्ते उनको ट्रैनिंग दी जाए | महिलाओं का असल विकास तब तक संभव नहीं है जब तक एक महिला को पुरुष के साथ स्त्री के रूप में जोड़ कर न देखा जाए।  पत्नी, माता, बहन आदि संबंधों के  नज़रिए से नहीं। बेटियों को आप रिश्तों में मत बाँधिए उसे अपनी मर्ज़ी से रिश्तों में बंधने दीजिये फिर वो रिश्ता चाहे मित्रता का ही क्यों न हो। धन्यवाद। -प्रियदर्शन शास्त्री 

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