Total Pageviews

Tuesday, February 26, 2013

नौटंकी, नौ टंकी एवं गैस की टंकी

      नौटंकी, नौ टंकी एवं गैस की टंकी, तीनों में बड़ा तालमेल है। सारा देश पिछले साल भर से गैस की टंकी की नौटंकी में लगा हुआ है और हमारे प्रधानमंत्री महोदय महात्मा गाँधी के एक नहीं तीनों मंकी की तरह आँख, कान, मुँह सब बंद किये बैठे हैं। खैर एक समय था जब कहा जाता था "भूखे पेट भजन नहीं होए गोपाला।" अब मायने बदल गए हैं अब माँएँ अपने बच्चों से कहती हैं "खाली टंकी भोजन नहीं होए मोहे लाला।" अब ये बात बासी हो गई है कि  "पापी पेट ही सब कुछ कराता है। आज ये पापी टंकी ही सब कुछ नौटंकी कराती है। सब खेल सब्सिडी का है। केंद्र सरकार ने पहले छः का कहा था पर राजस्थान सरकार ने नौ टंकी कर दी है। सरकार की बात चली तो हमने एक सज्जन से कहा कि रेल बजट आ रहा है आप का क्या कहना है। सज्जन तपाक से बोले- "कहना क्या है सब नौटंकी है। अपनी अपनी ढोलकी पर अपने अपने राग अलाप रहे हैं, बेचारी जनता मुँह बाएँ देख रही है।" सज्जन की बात पर हमें एक बात और याद आ गई। कुछ समय पहले तक किसी नौटंकी या नाटक में जब किरदार अपना रोल सही नहीं निभाते थे तो दर्शक टमाटर एवं अण्डे फेंका करते थे। ये एक प्रकार का "नापसन्दगी" को जाहिर करने का तरीका था। लोकतंत्र है अण्डे एवं टमाटर फेंकने वाले भी सत्ता में आ सकते हैं इसलिए उन्हें अच्छी तरह से पता था कि जिन पर उन्होंने अंडे-टमाटर फेंके है कल कोई और उन पर अंडे-टमाटर फेंक सकता है। राजकुमार साहब अकड़ कर अक़्सर कहा करते थे "जिनके घर शीशों के हुआ करते है वे दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंका करते,"  इसलिए तरकीब से टमाटर एवं अण्डे के दाम उन्होंने इतने ऊँचे कर दिए कि फेकने वाले को फेंकना तो दूर खाने को भी न मिले। खैर बात कहाँ से कहाँ चली गई। बात हो रही थी नौटंकी एवं गैस की टंकी की। नौटंकी में कथा-क्रम एक मुख्य किरदार के आस पास घूमता रहता है। इसी प्रकार हमारे देश में मुझे सभी परिवार जिन्दंगी के मूल कथा-क्रम को भूलकर गैस की टंकी के आसपास गरबा करते से प्रतीत होते हैं। गरबे के इस गोल चक्कर में एक आम आदमी ये भूल ही गया है कि सरकार ने उसे छः टंकी दी है या नौ टंकी। धन्यवाद।  - प्रियदर्शन शास्त्री 

No comments:

Post a Comment