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Monday, February 18, 2013


हे कृष्ण! तुमने तो कहा था
आत्माएँ अजर हैं अमर हैं शाश्वत है
पर हमने तो नहीं पाया ऐसा कुछ।
जब तुम धरा पर आए थे तब  केवल
शरीरों की मौत हुआ करती थीं।
अब समय बदल चुका, युग बदल गया
ज्ञान तुम्हारा पिछड़ चुका।
अब तो आत्माएँ भी मरती हैं,
जिन्दा शरीरों में।
ज़रा फिर से इस धरा पर तो आओ,
"पधारो म्हारे देस।"
कह जो गए थे-
"यदा यदा ही धर्मस्य ग्लनिर्भवति भारत।"
चूक गया था शायद अर्जुन- पूछना "कौनसा?"
आओ अपने ज्ञान को अद्यतन कर जाओ,
सैद्धान्तिकता में ही नहीं व्यावहारिकता भी देख जाओ,
नई परिभाषा के साथ नई गीता को रच जाओ
पर मेरी भी इक सलाह याद रखना
भूले से भी (आत्मा को) अजर अमर मत कहना
जाओ तो चले जाना पर
फिर से किस धर्म की ग्लानी पर आओगे
बस इतना ज़रूर बता जाना। ............
 .....प्रियदर्शन शास्त्री    

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