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Thursday, February 14, 2013

वेलेन्टाइन डे, बसन्त ऋतु, मच्छर एवं स्वाइन फ्लू.....

     वेलेन्टाइन दिवस। एक बीस-इक्कीस वर्षीय प्रेमी युगल की आँखों में आंसूं देख हम भाव विभोर हो बोल उट्ठे- "मोहब्बतों में बहे हैं अश्क़ तुम्हारे, यूँ ही बरबाद न कर देना, जरा सम्हल कर इन्हें पी भी जाना ये खारे नहीं मीठे होते हैं।" हमारी बात सुन प्रेमी युगल तपाक़ से बोला- "नहीं सर ! ये मोहब्बतों के आंसू नहीं हैं। ये तो मोटरसाइकल पर हम जा रहे थे तो आँखों में मच्छर गिर गए।" हमने कहा- शायद वे प्यार के दुश्मन रहे होंगे। युगल बोला-"काहे प्यार के दुश्मन ?" ये सब तो बसंत ऋतु का करा धरा है। हमने कहा भाई ! इसमें बसंत का क्या दोष ? बल्कि बसंत ऋतु में तो कोयल कूकती है तो मन और अधिक बाग़ बाग़ हो जाता है। युगल बोला- सर ! कोयल तो हम जब चाहे तब कूका लेते हैं हमारे पास मोबाइल में रिंगटोन जो है। बात मच्छर की है। खैर हम आपको विस्तार से समझाते हैं। देखिये ! बसंत में सरसों के पीले पीले फूल खिल उठते हैं। बीमारी की असल जड़ ये ही हैं। उधर खेतों में फूल खिले नहीं कि इधर लाखों की तादाद में मच्छर (सरसों के फूलों पर होने वाला एक विशेष प्रकार का पंख वाला कीड़ा जिसे आम बोलचाल में मच्छर कहते हैं) हवा में तैरने लगते हैं। ऊपर से इन्हीं दिनों में वेलेन्टाइन डे आ जाता है। अब प्यार के लिए बड़ी मुश्किल से एक दिन निर्धारित किया है तो ये मच्छर आँखों में टपक पड़ते हैं। आप ही बताइए, एक दूसरे की आँखों में आँखे डाल कर क्या खाक़ देखेंगे। जब सीधी तरह से आँखें ही नहीं मिला पा रहे हैं तो एक दूसरे के दिल के राज को कब जानेंगे ? ऐसे आधे आधे-अधूरेपन में कोई बात हमारे बीच आगे बढ़ गई तो ? ये "प्यार" तो खामखाँ बदनाम हो जाएगा ना। हम सोच में पड़ गए। वाकई में प्रेमी युगल का कहना सही था। अब सवाल ये था कि वेलेन्टाइन डे, बसन्त ऋतु, मच्छर एवं स्वाइन फ्लू। क्या सभी को एक ही वक़्त पर आना चाहिए ?- प्रियदर्शन शास्त्री        

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