सत्य नंगा होता है जबकि असत्य रंगबिरंगा आवरण ओढ़े। इलाहबाद महाकुम्भ में रेल्वे प्लेट फॉर्म पर हुई भगदड़ में निर्दोष श्रद्धालुओं की जानें चली गईं। बड़ी दुखद घटना घटित हुई। उत्तरप्रदेश सरकार के लिए ये हादसा रेल्वे स्टेशन पर हुआ है जबकि केंद्र के रेल्वे मंत्री महोदय का बयान है कि इतनी बड़ी तादाद में लोगों के लिए व्यवस्था कर पाना नामुमकिन है। हादसे का असल कारण क्या था, जितने मुँह उतनी बातें। हमेशा की तरह असलियत जनता के सामने नहीं आने वाली। जब असलियत ही सामने नहीं आएगी तो जिम्मेदार कौन होगा यह तय कर पाना नामुमकिन है। हमारे देश में हजारों रुपये की मासिक तनखा पाने वाले लाखों राजकीय एवं केन्द्रीय कर्मचारी हैं, उनके पास प्रशानिक अधिकार एवं संसाधन दोनों हैं। जब कभी भी किसी सार्वजनिक व्यवस्था की बात है तो लाखों करोड़ों के खर्च के ब्यौरे तो सामने आ जाते हैं परन्तु असल व्यवस्था राम भरोसे ही होती है। जब कोई हादसा हो जाता है तब नेताओं एवं अधिकारियों द्वारा बनाई गई जो बहाने-बाजी सामने आती है, सुनकर बड़ा आश्चर्य होता है। तब अनायास ही ख्याल आता है कि क्य़ा इन सब अधिकारियों एवं मंत्रियों पर होने वाला करोड़ों का खर्च, ऐसी बहाने-बाजी के लिए किया गया था ? जिस माटी पर ये लोग पैदा हुए हैं उसी माटी पर जन्मी अपनी मूल संस्कृति के लोगों के प्रति ऐसा गैर जिम्मेदाराना बर्ताव क्यों ? ज़रा उन लोगों के परिवारों को ध्यान से देखों जिनका हादसे में कोई जुदा हो गया है। क्या सरकारें खुश हैं ऐसे हादसों से कि चलो अच्छा हुआ कल से लोग कम आएँगे ? वाह ! क्या हमारे देश में यही राजनीति एवं लोकतंत्र शेष रह गया है? मंत्रियों के दौरों में करोड़ों खर्च किये जाते हैं, कलमाड़ी साहब करोड़ों रूपये खेल आयोजनों में डकार जाते हैं, योजना आयोग पैंतीस लाख का टॉयलेट बना लेता है परन्तु जब भी देश की जनता की बात आती है तो हमेशा की तरह वही सड़ी हुई बयान-बाज़ी, ऐसे में असत्य रंग बिरंगी ओढ़नी ओढ़े राजनीति की शक्ल में हमारे सामने मुँह चिढाता सा मुझे प्रतीत होता है। -प्रियदर्शन शास्त्री

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