आज एक रिक्शा वाले एवम् अध्यापक में बहस हो गई। बहस बड़ी रोचक थी। अध्यापक महोदय ने रिक्शा वाले से कहा कि ऑटो वाले बड़े लापरवाह होते हैं। "वैसे ऑटो चलाना भी कौनसी जिम्मेदारी का काम है।" ये बात शायद रिक्शा वाले को चुभ गई। उसने पलट कर अध्यापक महोदय से कहा- "साहब ! हमारे काम में तो बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है। जब तक आप हमारे ऑटो बैठे हैं तब तक आपकी जान-माल की हिफाजत करना हमारी जिम्मेदारी है इसके आलावा थोडा भी ध्यान चूक जाए तो गाड़ी कहीं ठुक गई तो आपको चोट लग जाएगी।" "साहेब ! वैसे आपके काम में कौनसी जिम्मेदारी है जरा बताइए तो ? अध्यापक महोदय बड़े घमंड से बोले- " भाई ! तुम ठहरे कम पढ़े-लिखे, एक शिक्षक के कार्य को क्या समझोगे ? हम देश की भावी पीढ़ी को पढ़ाते हैं, उन्हें शिक्षा देते हैं। समाज में हमें गुरु समझा जाता है, ईश्वर से भी बड़ा स्थान है हमारा।" अध्यापक की बात सुन रिक्शा वाला बोला - अच्छा ! "साहब आज आपने बच्चों को पढाया ?" अध्यापक ने कहा- "नहीं ! आज से चार दिन तक दिवाली का विद्यालय में अवकाश है। क्यों तुम क्यों पूछ रहे हो ?" रिक्शा वाले ने अध्यापक की बात सुन कर कहा - "मतलब ये कि चार दिन तक आप देश की भावी पीढ़ी को शिक्षित करने की जिम्मेदारी मुक्त।" रिक्शा वाले की बात सुन अध्यापक बोला-"चार दिन की छुट्टी है तो इसमें मैं क्या करूँ ? रिक्शा वाला फिर बोला- "साहब ! हमारी एक लापरवाही से किसी की जान तक जा सकती है। हमारा चालान कट जाता है हमें जेल तक जाना पड़ता है। नुक़सान के लिए हमें रिक्शा का बीमा कराना क़ानूनी रूप से जरुरी होता है ताकि पीड़ित को मुआवजा दिया जा सके। आपकी लापरवाही से होने वाले नुक़सान के लिए कौन जिम्मेदार है ? आपकी लापरवाही के लिए क्या आपको भी जेल-वेल जाना पड़ता है ? मुआवजे के लिए कोई बीमा-वीमा भी कराना पड़ता है साहेब ? अध्यापक महोदय रिक्शा वाले की बात सुन चिढ गए। बोले- " क्या गवारों जैसी बातें करते हो। हम स्कूल जाते हैं, बच्चों को पढ़ाते हैं। इसमें नुकसान की क्या बात ?" रिक्शा वाला बोला- "साहब ! आप का काम पढ़ाने का है। यदि कोई बच्चा फेल हो जाए तो ? ये तो बहुत बड़ा नुकसान है न उसकी जिंदगी का ? इसका जिम्मेदार कौन ?" अध्यापक महोदय बोले- "भाई ! हमारा काम केवल पढ़ाना है। बच्चे के पास-फेल की जिम्मेदारी हमारी थोड़े ही है। जिसकी जितनी समझ होगी वो उतना पढ़ लेगा ? किसने कितना पढ़ा वो हमारा टेंशन नहीं है।" इतने में एक कार तेज गति से ऑटो के सामने से गुजरी। अध्यापक महोदय के मुख से अचानक निकला- "जरा सम्हल के !" रिक्शा वाला बोला- "क्यों साहब ! आप तो कह रहे थे कि हमारे काम में कोई जिम्मेदारी नहीं होती है, फिर आपने मुझे सम्हल कर चलने को क्यों कहा ?" अगर आजादी के बाद से आप शिक्षकों को भी किसी ने "जरा सम्हल के" कहा होता तो आज एक 'शिक्षक' एवं 'रिक्शक' (रिक्शा चलाने वाला) के काम में इतना अंतर न होता। हम रिक्शा वाले की बात सुन कर स्तब्ध थे। -प्रियदर्शन शास्त्री
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