एक बार राजा के दरबार में एक चतुर व्यक्ति आया। उसने राजा को चुनौती दी कि आपके राज में कोई है जो धरती नाप कर बता सके ? यदि कोई नहीं बता पाया तो राज उसका हो जाएगा। राजा ने ढिंढोरा पिटवा दिया कि जो कोई धरती नाप के दिखाएगा उसे आधा राज दिया जाएगा। बहुतों ने आजमाया पर धरती नापना असंभव था। राजा के सामने राज चले जाने की चुनौती मुँह बाएँ खड़ी थी। दो दिन बाकी बचे थे। राजा निराश था। तभी एक बुद्धिमान व्यक्ति आया उसने राजा से कहा कि वो चिंता न करे। दो दिन की समाप्ति से पूर्व वह धरती नाप कर बता देगा। दो दिन बीत गए, सूर्यास्त होने को था तभी वो बुद्धिमान व्यक्ति वहां आ पहुंचा। चतुर व्यक्ति ने बड़ी उत्सुकता से पूछा कि भाई ! धरती नाप ली ? बताओ कितनी है ? राजा ने भी वही सवाल उस बुद्धिमान आदमी से किया। वह चतुर व्यक्ति एवं राजा को एक मैदान में ले गया। वहाँ ढेरों की मात्रा में रेशमी धागों के गोले रखे हुए थे। चतुर व्यक्ति उन गोलों को देख कर बोला ये क्या है ? बुद्धिमान आदमी बोला- 'यही है धरती का नाप। चाहो तो इसे पूरी धरती पर लपेट कर नाप लो, ये धागा एवं धरती दोनों एकदम बराबर हैं। यह देख चतुर व्यक्ति समझ गया उसने हर मान ली।
आज हमारे देश के हालात भी इस कहानी की तरह ही है। जनता की हालत राजा के समान है जिसके हाथ से राज छिन का डर है। भ्रष्टचारी लोग उस चतुर आदमी की तरह चुनौती दे रहे हैं कि जरा उनके भ्रष्टाचार की जमीन को कोई नाप कर तो बता दे। जबकि अरविंद केजरीवाल साहब ने उस बुद्धिमान व्यक्ति की तरह खुले मैदान में रेशमी धागों के ढेरों गोले ला कर पटक दिए है। अब सवाल ये है कि किसकी औकात है कि इन धागों से धरती को लपेट कर नापे ?
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