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Monday, October 8, 2012

जानवरों की सभा....

      एक दिन जंगल में राजा शेर ने एक सभा आयोजित की जिसमें जंगली जानवरों के साथ साथ पालतू पशुओं को भी आमंत्रित किया गया | सभा का मुख्य मुद्दा था "मानव द्वारा उन पर हो रहे अत्याचार।" शेर ने सबसे पहले पालतू पशुओं में से गाय को मंच पर बुला कर अपने अनुभव बताने को कहा- गाय ने कहा- "बरसों से मैं दूध आदि देती आ रही हूँ वो सब बात तो अब पुरानी हो गई है आज तो मानव नकली दूध-दही से काम चला लेता है। मेरी हालत बकरे के समान हो गई है कि कब मैं हलाल कर दी जाऊँ !  कहते कहते गाय का गला रुंध गया उससे आगे कुछ कहा नही गया। शेर ने कुत्ते को बुलाया- कुत्ता मंच पर चढ़ा। एक बार उसने कातर दृष्टि से सब को देखा फिर बोला हे सभा में उपस्थित महानुभाओं ! हम सब श्वान उस दिन को कोस रहे हैं जब हमने जंगल को छोड़ मानव के साथ रहने का निर्णय लिया था | भगवान ने हमें जैसा भी रूप दिया है वह ठीक था पर मानव ने ग़लत-सलत मेल करा कर हमारी कई तरह की डिजाइन बनाकर हमें सजावट की वास्तु समझ रखा है | जब भी आपस में मिलते हैं तो एक दुसरे का रंग रूप देखकरहमें बड़ी शर्म आती है | हमारी जाति के नाम से गाली दी जाती है, इसलिए हमने तय कर रखा है कि जब भी कोई आदमी रोटी का टुकड़ा देगा तब हम उसे दुआ नहीं गाली देंगे | महाराज ! कोई व्यक्ति हमें रोटी देता है तब हम उसे इसीलिए एक अजीब निगाह से देखते हैं। कुत्ते ने अपनी बात पूरी कर ली थी। अब की बार मंच पर भैंस को बुलाया गया। भैंस बड़े ही दुखी मन से बोली- हम हज़ारों सालो से मानवों को देख रहे हैं | बहुत बरस पहले जिस बाड़े में हमारे पूर्वज बँधा करते थे, उसी बाड़े में एक संत ने लोगों के सामने एक बार प्रवचन दिया था कि लाख मुसीबत आए विचलित मत होना, लाख कोई बुरा कहे, इस कान से सुन उस कान से निकाल देना....| प्रवचन सुन कर मानव तो वहीं का वहीं रह गया है महाराज ! पर हमारे पूर्वजों ने उस दिन तय किया था कि आज से हम किसी भी प्रकार की मुसीबत आने पर ज़रा भी विचलित नहीं होंगे न किसी को बुरा कहेंगे, न ही किसी का बुरा सुनेंगे। बस इस संसार को हम आंसू भरी आँखों से टुकूर टुकूर देखते रहेंगे। भैंस आगे बोली - "देखो मानव की धृष्टता, हमारे इस चुप रहने के गुण पर वे  कहते हैं कि भैंस के आगे बीन बजाने से क्या फायदा। अब कौन इन्हें समझाए कि बीन हमारे आगे बजाने की चीज़ ही नहीं है ? मुझे इंसान की मूर्खता पर हँसी आती है कि जिसके आगे जो बजाना है उसे तो वह बजा नहीं रहा है और मेरे आगे जो नहीं बजाना है उसे बजाकर अपना समय बर्बाद कर रहा है। भैंस की बात पर सभा में जोरदार तालियाँ बजाई गई। अब शेर ने मंच पर मोर को अपनी बात रखने को कहा | मोर बहुत ही सुंदर प्राणी होता है। सरस्वती स्वयं उस पर विराजित होती हैं। मोर एक पुस्तक हाथ में लिए मंच पर चढ़ा। पुस्तक में लिखी एक चौपाई पढ़ कर सभा में सब को सुनाई - "बडें भाग मानुस तनु पावा | सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हीं गावा......अर्थात सभी धर्म-ग्रंथों का कथन हैं कि मनुष्य-जन्म बड़े भाग्य से मिलता है। यह जन्म देवताओं के लिए भी दुर्लभ है।" चौपाई सुना कर मोर बोला हे सभा में उपस्थित सभी प्राणियों ! ज़रा हाथ उठा कर मुझे बताओ कि क्या मनुष्य हम सब से अधिक सुंदर, गुणवान एवं ताक़तवर प्राणी है ? सभी ने एक सुर में  कहा- बिल्कुल नही | 'तो फिर मनुष्य खुद ही किताब लिख कर स्वयं ही मियाँ मिट्ठू क्यों बन जाता है।" अगर वह अपने आप को इतना ही सुंदर मानता है तो किसी स्त्री की आँखों की तुलना वह हिरणी की आँखों से क्यूँ करता है। हाथी के सर वाले गणपति को क्यों पूजता है ? वानर रूपी शारीर में हनुमान को क्यों देखता है ? सभा पूरे शबाब पर थी।
     खैर मैं मानव होने के नाते पेड़ की आड़ में छुपकर सभा की बातें सुन रहा था | तभी ऊपर दो नटखट वानरों ने मुझे देख लिया वे हंसकर बोले -"देखा छुप कर हमारी बात सुन रहा है आख़िर इंसान है न! कभी किसी जानवर को छुप कर इस प्रकार बात सुनते देखा है? हम शर्मिंदा थे। हमें वहाँ से खिसकने में ही भलाई लगी सो हम खिसक लिए परंतु सभा जारी थी। धन्यवाद |   -प्रियदर्शन शास्त्री 

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