एक राजा था वह हर वो चीज़ देता था जो उससे माँगी जाए। कोई कुछ माँगे ये राजा को अच्छा लगता था। उसे इस बात का अहंकार भी था। बिन माँगे कोई कुछ पा नहीं सकता था, राजा से माँगना ज़रूरी था | एक दिन एक फ़क़ीर ने राजा से कहा मैं बिन माँगे ही तुम से वह ले जाऊँगा जो मुझे चाहिए | राजा को फ़क़ीर की बात नागवार गुज़री | बिन माँगे कोई कैसे कुछ ले जा सकता है ? उसने फ़क़ीर को समझाया परंतु वह नहीं माना | राजा को फ़क़ीर पर बड़ा क्रोध आया | उसने उसे फाँसी पर चढ़ाने का आदेश दे दिया | जब उसे फाँसी पर चढ़ाया जाने लगा तब राजा ने उसे फिर कहा कि जो तुम्हारे मन में है उसे एक बार ही सही, माँग लो तो मैं तुम्हें छोड़ दूँगा | फ़क़ीर ने राजा से कहा- हे राजन ! जो चाहिए था वह तुम बिन माँगे कब का मुझे दे चुके हो | राजा आश्चर्य से बोला- मैं समझा नहीं | फकीर ने राजा को समझाया- हे राजन ! संसार में बस दो ही ऐसी बाते हैं जो बिन माँगे ही मिलती हैं पहली- जन्म एवम् दूसरी- मृत्यु, जो तुम बिन माँगे ही मुझे दे चुके हो | राजा को अपनी बात पर पछतावा हुआ उसने फकीर से माफी माँगते हुए कहा- हे फकीर ! तीसरी एक चीज़ और है जो तुम्हें बिन माँगे ही दे रहा हूँ वो है तुम्हें छोड़ देने का आदेश | राजा की बात सुन फकीर वहाँ से हंसकर चला गया।
- प्रियदर्शन शास्त्री
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