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Sunday, October 28, 2012

ज़रा धरती पर भी आ जाओ जनाब !

हम अक्सर हवा में उड़ते से प्रतीत होते हैं गीता क़ुरान बाइबल एवम् रामायण हमारे सिरहाने रखी होती है, सभी प्रकार के धार्मिक स्थलों के आगे हम सदा नतमस्तक रहते हैं, हमारे यहाँ टीवी चैनलों पर सैंकड़ों भागमा वस्त्रधारी प्रवचन करते दीखते हैं, अब तो हालत ये है कि प्रवचन में कही गई बातें कंठस्थ हो चुकी हैं, सहिष्णुता हमारे में कूट कूट कर भरी पड़ी है और तो और दुश्मन भी मर जाए तो हमारी आँखों में आँसू आ जाते हैं परंतु इतना सब कुछ होते हुए भी सवाल ये है कि हम स्वयं के बजाय दूसरों में संस्कारों को क्यों देखना चाहते हैं ? क्यों पडौसियों के घर में कुछ नया होने पर दिल जल जाता है ? हमारे बच्चों के मैनर्स की बात करने के बजाय घर आए मेहमानों के बच्चों के मैनर्स की बात ज़्यादा क्यों करते हैं ? सबको कहेंगे- लालच बुरी बला है परंतु मौका पड़ते ही स्वयं एक मौका नहीं छोड़ते, खैर सैंकड़ों सवाल हैं। हमारे एक प्रोफ़ेसर साहब डॉ. ओजस्वी शर्मा अक्सर कहा करते थे कि हमारे देश में ज़्यादा महापुरुषों का पैदा होना गर्व की बात नहीं बल्कि ये इस तथ्य को इंगित करता है कि हम कितने पिछड़े हुए एवम् भ्रष्ट हैं, हमें ऊपर उठाने के लिए बार बार महापुरुषों को हमारी धरा की सीमा में जन्म लेना पड़ता है इसीलिए मैं कह रहा हूँ कि हम शायद हवा में उड़ रहे हैं।ज़रा धरती पर भी आ जाओ जनाब ! धन्यवाद। -प्रियदर्शन शास्त्री

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