Total Pageviews

Wednesday, October 17, 2012

व्यापारी स्टेट

नितिन गडकरी 
      कल अरविंद केजरीवाल ने भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर विदर्भ, महाराष्ट्र में १०० एकड़ ज़मीन खरीद के घोटाले का आरोप लगाया। गडकरी राजनेता होने के बजाय एक व्यापारी हैं तथा वे भाजपा का उपयोग अपने बिजनेस अंपायर को फैलाने के लिए कर रहे हैं। यहाँ बड़ा सवाल है कि क्या देश के राजनेता व्यापारी हो गए हैं ? या देश की राजनीति व्यापारियों के हाथों में आ गई है ? लगभग सब नेताओं ने पिछले कुछ सालों में अपनी संपत्ति में बे हिसाब इज़ाफा कर बड़े बड़े व्यापारिक संस्थान स्थापित किये हैं। अतः इसमें कोई दो राय नहीं है कि गडकरी साहब भी एक व्यापारी नही हैं। अन्य नेताओं की तरह उनकी भी कंपनियाँ तथा साकर मिलें होंगी। 
    मेरी बात में गडकरी साहब ने क्या किया क्या नहीं किया विचारणीय नहीं है। विचारणीय है राजनीतिक सोच में आया बदलाव। राजनीति सेवा धर्म है परंतु वर्तमान में यह व्यापार हो गई है। इसका मुख्य कारण है  हमारी राजनीति का व्यापारियों के हाथों में चले जाना। आज सरकार भी 'व्यापारी' हो चुकी है। उसके लिए देश की जनता, जनता न होकर ग्राहक बन गई है | कहते हैं "Every thing is fair in love and war" ठीक यही बात व्यापार के लिए भी लागू होती है। प्रतिस्पर्धा, मुनाफ़ा, शोषण, हानि आदि बातें व्यापार जगत की है। व्यापारी एवम् ग्राहक में चूहे बिल्ली सा बैर होता है। ज़रा गौर करिए आज केंद्र सरकार भी तो विकास के नाम पर व्यापार ही कर रही है। 
      शासन के दो रूप होते हैं एक पुलिस स्टेट जिसमें सिर्फ़ क़ानून का कड़ाई से पालन कराया जाता है। दूसरा कल्याणकारी स्टेट जिसमें जनता के कल्याण का भी सोचा जाता है, जनता के लिए कल्याण के लिए कार्य किए जाते हैं। आज केंद्र हो या राज्य सरकारें, किसी भी सरकार का रूप न तो पुलिस है न ही कल्याणकारी, बल्कि एक नया रूप हमारे देश में पैदा हो गया है वो है व्यापारी स्टेट का | याद रखिए एक व्यापारी का ध्येय सिर्फ़ मुनाफा कमाना होता है उसके लिए सम्पूर्ण जगत ग्राहक समान होता है। सेवा, दया, कल्याण, भला, व्यवहार आदि शब्द उसके लिए जहर होते हैं। ऐसे में आम जनता सस्ताई एवं भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन का सोचे, तो मेरी राय में ये सब एक कोरी कल्पना मात्र है। विश्व में जहाँ दस देशों में पेट्रोल-डीज़ल १-२ रु. लीटर बिक सकता है वहाँ हमारे देश में इतनी महँगाई क्यों ? किसने देखा है कि वाक़ई गेस कंपनियों को घाटा हो रहा है? अब तो लगता है ये सब घाटे व्यापार जगत की रणनीतियों के हिस्से ही है ताकि अधिक से अधिक मुनाफ़ा कमाया जा सके। एक व्यापारी के लिए सब कुछ जायज़ होता है, जनता गडकरी साहब से उम्मीद करे कि वे एक अच्छे विपक्षी होकर सरकार पर नियंत्रण रखेंगे, सब बक़वास बातें हैं। देश में बत्तीस करोड़ लोगों को भरपेट खाना नहीं मिलता है। वे भूखे ही सोते हैं ऐसे हमारे "व्यापारी नेता" शायद अलग से "बस पांच" रूपये में मेगी जैसा कोई फ़ूड बना कर मुनाफा कमाने की सोच रहे होंगे। धन्यवाद । -प्रियदर्शन शास्त्री 

No comments:

Post a Comment