Total Pageviews

Wednesday, October 3, 2012

ग़लतियाँ

    कहते हैं ग़लतियाँ इंसान से ही होती हैं। क्षमा, पछतावा, सुधार आदि वो शब्द हैं जिनके द्वारा की गई ग़लतियों से हुए नुक़सान की भरपाई की जा सकती है। सवाल यहाँ ग़लती करने तथा उससे हुए नुक़सान की भरपाई का नहीं है। यहाँ बात उस इंसान की है जो ग़लती भी करता है और उन गलतियों पर परदा डालने के लिए या तो वह दूसरे की ग़लतियाँ निकाल कर अपना बचाव करने लगता है या दूसरे को बदनाम कर अपने आपको साफ-सुथरा बताने की कोशिश करता है। जीवन में इस प्रकार के व्यक्ति से कभी न कभी आपको भी पाला जरुर पड़ा होगा। ऐसा व्यक्ति आपका मित्र या रिश्तेदार भी हो सकता है। 
      हर इंसान को देश काल के मुताबिक़ अपनी इज़्ज़त प्यारी होती है और जब बात उसकी इज़्ज़त पर आती है तब उसे ये ध्यान में आता है कि लोग क्या कहेंगे ? भेड़ जब चरती है तब उसका ध्यान केवल घास पर होता है।.जब वह अपनी गर्दन ऊपर उठाती है तब उसे पता चलता है कि उसके आसपास एक और दुनिया भी है यही हाल इंसान का भी है जब वह निरंकुश भाव से अपनी मनमर्ज़ी करता चला जाता है तब वह किए जाने वाले ग़लत कार्यों के बारे में नहीं सोचता है। वह उन ग़लत कामों का बड़े मज़े से लुत्फ़ उठाता रहता है। उसके आसपास के लोग भी उसे मूक बने देखते रहते हैं। परंतु जब वह भेड़ की तरह अपनी गर्दन उठाकर आसपास देखता है तब उसे अपनी बदनामी का अहसास होने लगता है और अपनी ग़लतियों पर परदा डालने के लिए वह अपने आसपास में से ही किसी को दोषी बना देता है। ऐसे दोषी बनाए गए व्यक्ति के लिए क्षमा, पछतावा, सुधार आदि शब्द कोई मायने नहीं रखते हैं। धन्यवाद।
- प्रियदर्शन शास्त्री 

No comments:

Post a Comment