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Friday, September 7, 2012

असत्य

         आम भारतीयों, जिनमें हम और आप भी शामिल हैं, में अक्सर किसी बात या समस्या को छुपा लेने की प्रवृति देखने को मिलती है| इसका अर्थ ये नहीं है कि हम लोग अंतर्मुखी हैं| इस प्रवृति का सीधा-सीधा संबंध अपने आप को बड़ा दिखाने से है| दूसरों को छोटा तथा अपने को  बड़ा दिखाने के चक्कर में हमारे यहाँ असत्य भी बहुत बोला जाता है| यदि कोई पूछे कि सबसे प्यारा क्या है तो मैं कहूँगा इज़्ज़त| इज़्ज़त प्यारी होती है ये बात सही है परंतु असत्य पर आधारित नहीं होनी चाहिए ऐसी इज़्ज़त रेत पर खड़ी दीवार की तरह होती है| रेत पर खड़ी दीवार एक बार जब गिरने लगती है तो उसे रोकी नहीं जा सकती है| क्या आप ने भी इस बात को महसूस किया है ? आप खुद पाएँगे कि आपके आसपास के लोग दिन भर में कितना असत्य बोलते हैं | एक व्यक्ति की जेब में पैसा नहीं है तो वो कहेगा कि "यार पर्स तो घर पर ही भूल आया |" सबके सामने उसके द्वारा खुद की आर्थिक तंगी स्वीकार कर लेना उसकी इज़्ज़त उतरने जैसा हैं और हम हैं कि उसके सामने अपने आपको बड़ा महसूस करते हैं | हालाँकि ज़रा ध्यान से देखेंगे तो पता चलेगा कि हमारी खुद की जेब भी खाली ही है | 
         कहते हैं कि हमाम में सब नंगे होते हैं; अभिप्राय है कि स्नान से पूर्व कपड़े उतारने ही पड़ते हैं यानि जिंदगी के हमाम में घुसे हैं तो कपड़े तो उतरेंगे ही, तो फिर हम सब ऐसा क्यों दिखाने में लगे हैं कि देखो हम तो कपड़े पहने ही स्नान कर रहे हैं जब कि दूसरों को आपके तन पर एक कपड़ा तक दिखाई नहीं दे रहा है | इस दृष्टि से आप दिगंबर(नंगे) हैं। ये समझिये कि आपके तन पर कपडे भी असत्य के हैं जो पहने तो हैं पर दिखाई नहीं देते। जब महावीर स्वामी जीवन के हमाम में उतरे तो उन्होंने भी अपने कपडे उतारे थे। तब उन्हें लगा कि दुबारा ऐसे असत्य के कपडे पहनने से क्या मतलब इसलिए वे ज्ञान प्राप्ति के बाद दिगंबर ही रहे। वे किसी धर्म द्वारा निर्धारित की गई रीति के अनुसार दिगंबर नहीं हुए थे। असत्य के कपडे पहनना, कपडे न पहनने के बराबर ही है। असत्य केवल दिखाई देता है पर उसका वजूद नहीं होता है इसके विपरीत सत्य दिखाई नहीं देता, फिर भी उसका वजूद होता है। महावीर स्वामी सत्य के कपडे पहने हुए हैं जो दिखाई नहीं देते इसलिए वे हमें दिगंबर जान पड़ते हैं जबकि हम सबने असत्य के कपडे पहने हैं जो केवल दिखाई देते है परन्तु हम असल में हैं नंगे। धन्यवाद |- Priyadarshan Shastri 
(These are my own thoughts. The purpose is to express them is not to hurt any one's emotions)    

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