
हम हमेशा अपने अंदर की सफाई की बात करते हैं परंतु मैं बाहर की सफाई पर ज़ोर देता हूँ। करके देख लीजिए। बाहर यदि साफ रहेगा तो अंदर अपने आप सफाई रहने लगेगी। एक बुढ़िया रोज अपनी झोंपड़ी में झाड़ू लगाती तथा कचरा बाहर फैंक देती। वो कचरा फिर अंदर आ जाता। बुढ़िया बार-बार झाड़ू लगाती कचरा पुनः अंदर आ जाता। बुढ़िया कचरे से परेशान होकर बड़-बड़ करती रहती। एक दिन प्रभु नारायण उधर से गुज़रे, बुढ़िया को देख कर वे रुक गए। वो उसकी परेशानी को समझ गए उन्होंने बुढ़िया को कचरा दूर फैंकने की सलाह दी। बुढ़िया हंस दी बोली नारायण होकर नादानों जैसी बात करते हो, तुम्हारे कहने से कचरा दूर तो फैंक दूँगी पर या तो फैंका हुआ कचरा किसी दूसरे के घर में चला जाएगा या उड़ कर एक दिन पुनः मेरे ही घर में आ ज़ाएगा। बुढ़िया की बात सुन नारायण हंस दिए और बोले- "हे माई ! ये केवल तेरी ही कहानी नहीं है, मैं सारी भारत भूमि पर विचरण करता रहता हूँ। सभी परेशान हैं इस समस्या से। बरसों से हमारे यहां सबको अपने अंदर की सफाई की शिक्षा दी जा रही है। सब अपने अन्दर का कचरा बाहर फैंक देते हैं, ये कचरा फिर अन्दर आ जाता है। इसी कारण आज तक गन्दगी में कमी नहीं आई, बल्कि ये बढती ही जा रही है, कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। हे माई ! इसलिए कहता हूँ कि ये जो कचरा है चाहे भौतिक हो या संसारिक, वो अंदर नहीं बाहर है। हर मनुष्य का एक "अंदर" का संसार होता है और एक "बाहर" का। करोड़ों में एक मनुष्य होता है जो इस "अंदर" के संसार में रहता है जो मेरे क़रीब होता है, बाक़ी सब तो "बाहर" में ही विचरण करते रहते हैं और इसी "बाहर" को ग़लती से "अंदर" समझते रहते हैं। ये जो "बाहर" है मैं इसी को साफ रखने की बात कर रहा हूँ। बाहर इतनी अधिक गंदगी हो गई है कि हे माई ! तू लाख झाड़ू लगा ले, तेरी झोंपड़ी साफ नहीं रहने वाली। ये कह कर नारायण आगे बढ़ गए। बुढ़िया को प्रभु नारायण की बात समझ में आ गई थी। अब बुढ़िया रोजाना अपनी झोंपड़ी के बाहर झाड़ू लगाने लगी। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कुछ ही दिन बाद उसकी झोंपड़ी अपने आप अंदर से भी साफ रहने लग गई थी।- Priyadarshan Shastri
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