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हिन्दी दिवस |
आज हिन्दी दिवस है उधर सरकार डीज़ल एवम् गेस के दाम बढ़ाने पर आमादा है | छः सिलेंडर तक तो सब्सिडी मिलेगी उससे ऊपर वास्तविक क़ीमत देनी पड़ेगी | सरकार का कहना है कि जो लोग सक्षम हैं उनको सब्सिडी देने का अब कोई मतलब नहीं रह गया है | बात एकदम सही है परन्तु इस नीति का लाभ इच्छित लोगों को मिलेगा इसमें संदेह है | एक परिवार को मैं जानता हूँ जिसमें केवल पति-पत्नी ही हैं उनकी बेटियों का ब्याह हो चुका है | उनके यहाँ किचन में एक गेस का सिलेंडर तीन माह से भी अधिक समय तक चलता है जबकि वे टेक्स पेयर की श्रेणी में आते हैं । दोनों पति पत्नी ४० से ५० हज़ार रु. महीने का कमाते हैं क्या साल में छः सिलेंडर से अधिक की उन्हें जरुरत है? मतलब, सीधे सब्सिडी का लाभ | इसके विपरीत एक और परिवार है जहाँ छोटे-बड़े सब मिलाकर १३ सदस्य हैं | महीने की आय १० हज़ार के आसपास | महीने के कम से कम दो सिलेंडर की खपत | छः सिलेंडर तक तो सब्सिडी बाक़ी के छः वास्तविक क़ीमत पर लेने की मज़बूरी | अब आप खुद सोचिए लाभ किसे मिलेगा |
लगता है नीति तय करने वालों को देश की वास्तविक स्थिति का ज़रा भी ज्ञान नहीं है | उन्हें ये पता ही नहीं है कि देश में ८०% जनता को कवर करने वाले परिवारों के लिए सिलेंडरों पर सब्सिडी की आवश्यकता है | बाक़ी बचे लोगों के घरों में तो चूल्हा बतौर फैशन जलाया जाता है | डीज़ल एवं गेस क़ीमते बढ़ाने की बात से कोयले पर से तो ध्यान हट गया पर इस देश के एक बहुत बडे हिस्से जो मध्यम एवम् ग़रीब जनता से बना है, के पेट पर सरकार ने करारी लात मार कर आज हिन्दी दिवस पर सबकी "हिन्दी" बनाई है | धन्यवाद।
-Priyadarshan Shastri
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