मनमोहन व्रत कथा |
एक बार बहुत सारे ब्राम्हण इकठ्ठा होकर श्री सूत जी से बोले हे प्रभु ! इस जगत में चारों और अंधेरा छा गया है कुछ लोगों के मुँह भी काले पड़ गए हैं | लोग तरह तरह की बातें कर रहे हैं, सूत जी ने बीच में ही टोंक कर पूछा हे विप्रों ! तुम किस जगत की बात कर रहे हो, कहाँ अंधेरा छा गया है और कैसे और किनके मुँह काले पड़ गये हैं कुछ जरा विस्तार से बताइए | ब्राम्हण बोले हे प्रभु ! हमारा जगत से मतलब कोयले की खदानों से है वहाँ चारों और अंधेरा ही अंधेरा है और कुछ लोग प्रभु इस अंधेरे का फायदा उठाकर कोयला खा गए हैं जिससे उनके मुँह काले पड़ गए हैं । आप ही के नश्वर संसार के अज्ञानी लोग उनके पीछे पड़ गए हैं हे प्रभु ! अब कुछ उपाय बताइए कि सब का मुँह बंद हो जाए | सूत जी बोले हे विप्रों आप सब लोग समझदार हैं मैं आज आपको एक व्रत बताता हूँ जिसे 'मनमोहन व्रत" कहा जाता है | इस व्रत को करने से सबकी बोलती तो बंद नहीं होती पर सबके बोलने का असर कुछ भी नहीं होता | अतः इस व्रत को करने की विधि ध्यान पूर्वक सुनें | सर्व प्रथम मरी मरी सूरत बनालें | तत्पश्चात सूनी आँखों से सिर्फ़ सामने की ओर ही देंखे | जब भी कोई हल्ला हो रहा हो तो उस पर तनिक ध्यान न दें | कोई लाख सवाल पूछे उसे अनसुना कर दें बस सवाल पूछने वालों के सामने टुकुर टुकुर देखते रहें | अपने मुख को कस कर बंद रखें | इस प्रकार से इस व्रत को संपन्न करने से मनवांछित फल प्राप्त होता है। अगर आपके व्रत से सामने वाला सर पटकने लग जाए तो समझिये आपका व्रत फलीभूत हो गया है। हे प्रभु ! इस व्रत को तोड़ने का क्या फल मिलता है और किन किन ने इस व्रत को तोडा, बताएँ । सूत जी बोले हे विप्रवर ! सुनों- मध्य भारत का एक दी नाम का राजा इस व्रत को अक्सर तोड़ता रहता है इसलिए प्रबुद्ध देश के प्रबुद्ध लोग उसे मूढ़ समझते हैं पर माता की कृपा से वह अभी भी चल रहा है परन्तु जिस के सर पर नील कमल के समान मुकुट सुशोभित है ऐसा एक महापुरुष अभी भी इस धरती पर इस व्रत को कर के सभी के सवालों की आबरूओं को बचाने में लगातार सफल हुआ है। इति कथा समाप्तम।
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