"बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला" तथा "हज़ारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी |" दोनों बातों में एक समानता है | दोनों में चेहरे के काले होने की बात छुपी है | एक में हो जाएगा एक में हो चुका है | खैर, कल प्रधानमंत्रीजी ने अपना मुँह पहली बार खोला | मुँह खुला तो जो बात निकली वो कोई समझ ही नहीं पाया | लगा कि प्रधानमंत्री जी अपने चारों ओर के बंधनों तथा पार्टी लाइन से ऊपर निकल कर बात कर रहे हैं | वैसे चाहते तो 'बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला" कहकर भी अपनी बात कह सकते थे पर पद की गरिमा ने ऐसा कहने नहीं दिया | अब जरा अपनी बात को विस्तार से स्पष्ट करता हूँ | पी. एम. साहब के शब्दों पर ध्यान दीजिए | 'हज़ारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी' मतलब सीधा है कि 'मेरी ज़ुबाँ मत खुलवाओ' | ज़ुबाँ खुली तो सारी पोल-पट्टी खुल जाएगी | दूसरे शब्दों मे उनका खामोश रहना ही बेहतर है | खामोशी का मतलब जवाब देने से जी चुराना बिल्कुल भी नहीं है | दूसरी लाइन में वे कहते हैं कि 'न जाने कितने सवालों की आबरू रक्खी' | सवाल हैं तो जवाब हैं और जब जवाब देंगे तो कइयों के नाम उजागर होंगे | तो सीधी बात हैं कि पी. एम. साहब ने जवाब देने के बजाय सवाल को सवाल ही रहने दिया, अर्थात सवालों के पीछे के लोगों की उन्होंने आबरू बचाली |
अब मैं अपनी पहले वाली बात पर पुन: आता हूँ | बात मैं कर रहा था 'बुरी नज़र वाले तेरा मुँह काला' की तो स्पष्ट है कि जिन जिन लोगों की कोयले पर बुरी नज़र पड़ी उनका मुँह काला तो हो ही चुका है | अब प्रधानमंत्री जी का मुँह खुलवाकर क्यों अपना काला मुँह सबके सामने लाना चाहते हो | हालाँकि आम जनता ज़रूर चाहती है कि काले मुँह वाले सबके सामने आएँ | परंतु नादान जनता को कौन समझाए कि जिन काले मुँह वालों को उनके सामने लाया जाएगा उनमें से कौन बबलू है और कौन बबलू की माँ ? पहचानेंगे कैसे ? धन्यवाद |
-Priyadarshan Shastri

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