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Wednesday, August 29, 2012

संवैधानिक कर्तव्य


आज माननीय उच्चतम न्यायालय ने कसाब की फाँसी की सज़ा को बरक़रार रखने का फ़ैसला सुनाया | भारतीय संविधान में शासकीय शक्तियों को १- कार्यपालिका २- विधायिका एवम् ३- न्यायपालिका में विभाजित किया गया है | इन तीनों में से आज एक ने अपने कार्य को पूर्ण किया | कार्य में समय लगा, जो लगना ही था | हम उस देश में रहते हैं जहाँ अपराधी चाहे कोई भी हो उसे सुनवाई का पूरा मौका दिया जाता है | कसाब एक ऐसा अपराधी है जो पाकिस्तान से भारत में आतंकवाद फैलाने के उद्दैश्य से भेजा गया था | उसने अपने काम को बखूबी अंजाम दिया तथा सरेआम निर्दोष लोगों की हत्याएँ कर डालीं | जिला न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक स्वयं को निर्दोष साबित करने के हर तरह के सुनवाई के मौक़े कसाब को दिए गए परंतु वह असफल रहा । उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर उसे दोषी साबित माना गया | इस प्रकार न्यायालय ने अपने कर्तव्य एवम् अधिकारों के पालन में पूर्ण निष्पक्षता रखते हुए न्यायिक सिद्धांतों पर अपना फ़ैसला सुनाया है | आज न्यायपालिका का काम पूरा हुआ | अब सवाल है कार्यपालिका का | गेंद कार्यपालिका के पाले में आने वाली है | मैं बात कर रहा हूँ उस क्षमा याचिका की जो कुछ समय बाद माननीय राष्ट्रपति महोदय के समक्ष होगी | सवाल वही है कि संविधान के अंतर्गत जब एक संस्था अपना कार्य बखूबी निभा लेती है तो क्या बाक़ी बची दो संस्थाएँ अपना संवैधानिक कर्तव्य समय पर निभा पाएँगी ? ख़ासकर ऐसे मौके पर जब अपराधी एक ऐसे राष्ट्र से है जहाँ हर पल हर घड़ी हमारे देश में आतंकवाद फैलाने की सोची जाती है | जब भी मौक़ा मिलता है देश में एक नहीं सैकड़ों क़साब भेजकर निर्दोष लोगों की जाने लेली जाती हैं | आज के फैसले में भी न्यायलय ने कसाब के अपराध को देश के साथ जंग माना है ।
            कसाब को फाँसी की सज़ा तो सुना दी गई है । जब कार्यपालिका के समक्ष प्रकरण आएगा तो देखना ये है कि सत्ता में बैठे लोग कसाब को देशद्रोही तथा हत्यारा मानकर जल्द निर्णय लेते हैं या वोट की राजनीति के तह्त उसे सामान्य अपराधी मानकर फ़ाइल को ठंडे बस्ते में डाल देते हैं | बड़ा सवाल है उन लोगों पर जो कार्यपालिका में बैठे है । सवाल है उनकी नीयत पर एक तरफ देश है तो दूसरी तरफ देश का दुश्मन | भविष्य बताएगा  कि साथ किसका दिया जाता है ? धन्यवाद |







-Priyadarshan Shastri

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