
एक आदमी के घर में एक बंदर घुस गया | मुहल्ले के सभी लोग उसे घर से बाहर निकालने के लिए इकट्ठा किए गए | सबसे पहले एक पढ़ा लिखा व्यक्ति आगे आया और बोला- 'भाई हम तो पढ़े लिखे हैं हमारे संस्कार हमें दूसरों के घर में ताकझांक करने की इजाज़त नहीं देते |' ये कहकर वो वहाँ से चला गया | अब एक समाज सेवक आया | भीड़ को संबोधित कर वो बोला- भाइयों ! हम मनुष्य सामाजिक प्राणी हैं इसलिए कोई भी काम मिलजुलकर एवं एकता से करना चाहिए, आइए हम सब मिलकर घर में घुसी बंदर रूपी बुराई को दूर करें ! समाजसेवी के बार बार आव्हान करने के बावजूद भी एक आदमी आगे नहीं आया | समाजसेवी थकहार कर वहाँ से चला गया | इस बार एक महिला बंदर भगाने के लिए आगे आई | लोगों को कुछ उम्मीद बँधी पर वो महिला एकदम पलट कर जाने लगी तो लोगों ने पूछ लिया कि बहन तुम कहाँ जा रही हो ? महिला ने जल्दी जल्दी जाते हुए कहा कि - "ये बात पहले पूरे मुहल्ले को बता कर आती हूँ फिर बंदर भगाऊँगी |" वो महिला भी जा चुकी थी | तभी एक युवा को किसी ने आगे कर दिया | युवा अँग्रेज़ी मीडियम में पढ़ा हुआ था वो बंदर को देखकर बोला हाय ! ये बंदर भी कितने 'अग्ली' होते हैं ! इसका मुँह भी कितना काला है | छि: ! मैं तो इसकी तरफ़ देखूं भी नहीं; कहीं मेरा मुँह काला हो गया तो ? अब भीड़ से निकल कर एक बुद्धवादी आया तथा बोला कि "भाई बेचारा बंदर है क्यों परेशन करते हो, अपने आप चला जाएगा |" भीड़ में एक नेताजी भी थे वो बोले 'बेटा तूने मुझे वोट दिया था जो मैं तेरे घर से बंदर भगाऊँ ? जा ! अगले चुनाव मे तेरी समस्या पर विचार करेंगे | तभी कुछ मीडिया वाले कैमरे आदि लेकर आ गए | उन्होने आनन फानन में माइक आगे कर उस आदमी से पूछना शुरू कर दिया- 'बताइए ! आपके घर में इस वक्त बंदर बैठा है आप कैसा महसूस कर रहे हैं ? वो आदमी बेचारा क्या कहता | उसका मुँह तो ढेर सारे माइक से पहले ही ढँक चुका था | बाकी सब मीडियाकर्मी अपने अपने कैमरों से उस बंदर का 'लाइव' कवरेज लेने, मकान की छत-डोली जहाँ बन पड़ता था चढ़ गए थे | तभी मुहल्ले का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति सामने आया बोला "बंदर तो हमारे पिताजी भगाया करते थे, हमने भी उन्हीं से सीखा है | लाइए कहीं से एक मदारी लेकर आइए जिसके पास एक सुंदर सी बंदरिया हो |' बुजुर्ग आगे कुछ बोलता उससे पहले ही उस आदमी ने उसे टोक दिया और बोला रहने दीजिए आपके अनुभव को अपने पास | किसी ने सलाह दे डाली कि पुलिस को बुलाओ | पुलिस वालो ने कहा ये तो वन विभाग का काम है हमारा नहीं | मुहल्ले में सत्ताधारी पार्टी के संसद सदस्य भी रहते थे | बंदर की समस्या उन्हें भी बताई गई | उन्होने कहा कि "भाई ! इसके लिए तो दोनों सदनों से बिल पास करवाना पड़ेगा उसमें तो देर लगेगी तब तक के लिए मैं एक जाँच कमेटी गठित कर देता हूँ |"अब तक सारा मुहल्ला निपट चुका था पर बंदर वहीं का वहीं घर में घुसा धमाचौकड़ी मचाने में व्यस्त था | वो समझ चुका था कि मुहल्ले के किसी भी आदमी में उसे घर से बाहर निकालने की हिम्मत नहीं हैं | उधर वो आदमी थकहार, अपने सिर पर हाथ रख कर बैठ गया तभी भीड़ से निकलकर एक बच्चा हाथ में डंडा लिए आगे आया और उस आदमी से बोला "बाबा ! ये डंडा गाँधी जी का दिया हुआ है | आज काम में नहीं लोगे तो कब लोगे ? ये "बंदर" है कोई "इंसान" नहीं जो समझदारी से हट जाएगा |" धन्यवाद |
(ये एक काल्पनिक कहानी मात्र है किसी व्यक्ति विशेष से इसका कोई ताल्लुक नहीं है । कहानी का उद्देश्य मात्र समाज पर व्यंग करना है )
-Priyadarshan Shastri
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