देखना श्रव्य से अधिक प्रभावकारी होता है इसी कारण हर छोटी बड़ी कंपनी अपने उत्पाद का विज्ञापन टेलीविज़न पर देकर अपना सेल बढ़ा रही हैं | बड़े बड़े सेलेब्रिटीज़् के मध्यम से विज्ञापनों को ग्लैमरस बना कर उत्पादनों को लोकप्रिय बनाया जाता है | विज्ञापनों पर करोड़ों रुपये जो खर्च किए जाते हैं उन्हें उत्पाद की लागत में जोड़ कर सीधे ग्राहकों से वसूला जाता है | ये बात किसी भी अर्थशास्त्री से पूछी जा सकती है। परिणामस्वरूप एक कम लागत की वास्तु भी महँगे दामों में बिकती है | ये आज का एक छोटा सा परिदृश्य है |
कल मैने एक पोस्ट डाली थी जिसमें देश के दो बड़े व्यक्तित्व के रिटायरमेंट की बात कही थी | कोई भी कलाकार या हुनरमंद अपनी कला एवम् हुनर से कभी रिटायर नहीं होता है बल्कि वो मिट जाता है पर उसका हुनर तथा उसकी कला हमेशा जीवित रहती है | बच्चन साहब भी एक महान अभिनेता है | पिछले ४०-५० वर्षों से उन्होने अपने अभिनय के बल पर कई फिल्मों को ऊँचाइयाँ दी हैं जो बेमिसाल हैं | इसी अभिनय की बदौलत जनता ने उन्हें बेहद प्यार एवम् सम्मान दिया है | आज उनके पास दौलत एवम् शौहरत दोनों हैं | यही बात सचिन तेंदुलकर पर भी लागू होती है कि वे भी विश्व के महानतम क्रिकेट खिलाडी है |
जब कोई उपलब्धि प्राप्त करता है तो देश की जनता भावुक हो उठती है तथा उसे सर आँखों पर बिठा लेती है | जैसे आज ओलम्पिक पदक विजेता। उपलब्धिप्राप्त कर्ता से जनता एक अनूठा संबंध बना लेती है | इसी अनूठे एवम् भावुक संबंध का फायदा उठा कर कंपनियाँ इन बड़े बड़े लोगों को अपने उत्पाद के विज्ञापन में भारीभरकम रकम देकर उपयोग करती हैं | मेरे ज़ेहन में कुछ सवाल आते हैं क्या ऐसे संबंधों का फायदा लेने का नैतिक अधिकार इन कंपनियों को है ? एक तरफ़ा बच्चन साहब का अभिनय एवम् शोहरत है दूसरी तरफ जनता का प्यार। ये एक प्रकार की अमूल्य निधि है । क्या एक कंपनी इस अमूल्य निधि का उपयोग अपने उत्पाद को बेचने के लिए कर सकती है ? क्या बच्चन साहब या जो भी देश के नामी गिरामी लोग विज्ञापन करते हैं उन्हें ये बात मालूम नहीं ? उन्हे कम से कम इतना तो सोचना चाहिए कि जिस उत्पाद का विज्ञापन वो कर रहे हैं उसका पैसा भी जनता से ही वसूला जाता है | ऐसे कई सवाल है | मेरा तो बस इतना कहना है कि भाई ! कला आपकी है हुनर आपका है उपलब्धि आपकी है | हम जनता इन सब को देखकर अपने आपको गौरवान्वित समझती हैं और आप जो है कि इसका उपयोग किसी उत्पाद की सेल बढ़ाने के लिए करते हैं | हमें तो ठीक नहीं लगा | माना कि पैसा कमाना चाहिए पर क्या उम्र के इस पड़ाव पर आकर जीवन में कमाया सब कुछ मिटा देना चाहिए ? जीवन कोई फिल्म का परदा थोड़े ही है जो "दी एंड" आने पर लोग उठ कर चले जाएंगे, असल जीवन में तो 'दी एंड' आने के बाद ही शुरुआत होती है । रही सेल बढ़ाने की बात तो वो तो किसी और तरीक़े से भी बढ़ जाएगी |मुझे फ़क्र है कि मैं भी इसी ज़मी पर रहता हूँ जिस ज़मी पर आप बसते हैं,
पर ऐ मेरे यार ! न कुछ करना ऐसा कि शर्म से मेरा सर झुक जाए और
फिर से मुझे मेरी दुनिया में लौट जाना पड़े । धन्यवाद |
-Priyadarshan Shastri
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