अन्ना हज़ारे ने जब से राजनैतिक विकल्प की बात की है तब से टेलीविज़न मीडिया, अख़बार आदि में इस संबंध में काफ़ी चर्चाएँ आ रही हैं | सारी बातों में ख़ासकर टीवी मीडिया में विकल्प के विरोध का पलड़ा भारी रखा है | पत्रकारों द्वारा अधिकतर प्रश्न वही उठाएँ हैं जिनके आधार पर देश में आज तक राजनीति होती आ रही है | जैसे जातिगत वोट बैंक का आधार क्या होगा, धन कहाँ से आएगा, कॉरपोरेट सेक्टर से क्या धन लिया जाएगा, सद्चारित्र लोग कहाँ से आएँगे ? आदि | हालाँकि ये सब ज्वलंत प्रश्न हैं | इन्हीं के कारण तो आज राजनीति का भ्रष्ट चेहरा हमारे सामने है | अन्ना को भी ये सब झेलना पड़ेगा | परंतु मैं यहाँ एक बात कहना चाहता हूँ क्या इन सवालों के बिना भी देश में राजनीति की जा सकती है ? क्या जाती-धर्म के आधार पर लोगों को बाँटना ही हमने राजनीति तो नहीं मान लिया है ? क्या धन सिर्फ़ कॉरपोरेट सेक्टर ही दे सकता है ? क्या बिना धन के कोई चुनाव नही हो सकते ? ये वो सारी बातें हैं जिनके आधार पर आज तक हमारे राजनेता चुनाव जीत कर संसद में पंहुच जाते हैं और फिर देश की रीतिनीति तथा दिशा तय करते हैं |
यहाँ सवाल राजनीति का है क्या वाक़ई हमारे नेता सत्ता के लिए राजनीति कर रहे हैं या सत्ता के ज़रिए कुछ और पाने के लिए राजनीति कर रहे हैं ? सोचने वाली बात है | बात सत्ताधरी नेताओं की है | उनकी नीयत का सवाल है | अगर मात्र सत्ता पाने की नीयत है तो वो तो लोकतंत्र का हिस्सा है परंतु सत्ता के ज़रिए कुछ और करना और पाना भ्रष्ट राजनीति है | मेरा मानना है कि राजनीति को भ्रष्ट किए बिना भी अच्छे लोग संसद में भेजे जा सकते हैं | ये आपको तय करना है | अपने मत को "दान" की विषयवस्तु मत मानिए वो आपका 'अधिकार' है | अबकी बार के चुनाव में नागरिक ये देखें कि किसने चुनाव में पैसा नहीं खर्च किया है | अन्ना राजनीति में आए या ना आए इस सवाल के बजाए ये सोचा जाए कि जनता किस प्रकार से वर्तमान राजनैतिक दलों में चुनाव में कम से कम खर्च की प्रतियोगिता उत्पन्न करे | कॉरपोरेट सेक्टर को नेताओं से दूर कैसे रखे ? ये वो ही लोग हैं जो नेताओं को चुनाव में चंदा देकर बाद में अपनी मान मानी करवाते हैं | जनता को भलीभाँति समझ लेना चाहिए कि क्या उन्हें जाती के आधार पर वोट देना चाहिए या मुद्दों के आधार पर | ये सारे मुद्दे हैं जिन पर देश की जनता को ही विचार करना पड़ेगा आख़िर जनता ही तो देश की मालिक है | धन्यवाद |

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