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Wednesday, August 8, 2012

रेखाएँ

          हमारे देश में दो रेखाएँ हैं एक अभिनेत्री हैं, तो दूसरी दिखाई नहीं देती है पर पूरे देश में व्याप्त है | पहली आजकल राज्यसभा में हैं, वह इसलिए कि एक तो वो जगह बूढ़ाय गए लोंगों के लिए महफूज है दूसरा- ये आराम का मामला है | दूसरी रेखा जो नजर नहीं आती, का न तो आदि है न अंत, न ओर है न छोर । ये पूरे देश में खींची हुई है | ये हमेशा बेचारे ग़रीबो को नीचे दबाए रखने में काम आती है | पहली वाली  रेखा को ग़रीबी के अभिनय का अच्छा-ख़ासा अनुभव है | ग़रीब एवम् ग़रीबी कैसी होती है ये समझने में उनका अनुभव राज्यसभा में काफ़ी मददगार साबित होगा | 
         इधर सरकार को भी ग़रीबों की काफ़ी चिंता रहती है इसीलिए दूसरी रेखा के माध्यम से सरकार ये देखती है कि देश में आख़िर ग़रीब कौन है ? इसी रेखा ने ही देश को बताया कि जिन्हें दो वक्त की रोटी नहीं मिलती है वो ग़रीब है | ऐसे देश में ६० लाख परिवार हैं | 
        हमें भी दो वक्त की रोटी नहीं मिलती है इसलिए हम भी पंहुच गए सरकार के पास अपने आपको ग़रीब बताने के लिए पर एनवक्त पर हाथों में मुए मोबाइल की घंटी बाज गई | सब कबाड़ा हो गया | सरकार बोली जिनके हाथों में मोबाइल होते हैं वो ग़रीबी की रेखा के नीचे नहीं आते | बस हमारा वहां से निकलना ही था कि सरकार को एक आइडिया आ गया देश से ग़रीबी दूर करने का | क्यों न देश के गरीब परिवारों को येनकेन प्रकारेण मोबाइल दे दिए जाएँ ताकि एक मिनिट में ही ग़रीबी मिट जाएगी | रहा सवाल दो वक्त की रोटी का तो ग़रीब आदमी रोटी के बजाय बातों से ही पेट भर लेगा आख़िर २०० मिनिट का टॉक टाइम भी तो फ्री दे रहे हैं | धन्यवाद | 
-Priyadarshan Shastri 

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