एक बार एक राजा के राज में एक बाबा-सन्यासी नेपाल से एक गुणी व्यक्ति को पकड़ लाया और उसने जनता की भलाई की सोची | नेपाली बेचारा सीधा सादा आदमी था | राज्य में प्रचलित "सिस्टम' के अनुसार उसने एक सुई चुराली | ये बात उस राजा पर नागवार गुज़री | चोरी करने का एकमात्र अधिकार सिर्फ़ राजा के आदमियों को ही था | दरबार मे एक राजमाता भी थी | उसकी 'परमिशन' के बिना राजा के राज में एक पत्ता भी नहीं हिलता था | उसकी कृपा से बड़े बड़े चोर खुले आम घूमते थे | पर राज्य की प्रजा बड़ी बत्तमीज़ थी, हमेशा राजा के आगे मुँहबाये खड़ी रहती थी | राजा ने सोचा कि प्रजा के आगे ये सबसे अच्छा मौका होगा यदि उस नेपाली को सुई चुराने की सज़ा देकर अपने आपको देशभक्त एवम् न्याय प्रिय साबित कर दे | खैर अब राजा को कौन समझाए कि एक अदने से नेपाल से आए सुई चोर को तो सज़ा दे देगा पर एक पड़ौसी और है जहाँ से रोज उसके राज में सैंकड़ो आतंकवादी घुस जाते हैं और निर्दोष लोगों की जान ले लेते है पर क्या करें उस राजा के राज का 'सिस्टम' कुछ अजीब है, एक पड़ौसी मुल्क़ से तो हत्यारे आकर सरकारी मेहमान बन कर मौज कर सकते हैं | उन्हें फाँसी-वासी नहीं लगती | पर दूसरे मुल्क़ से आए एक अदने से सुई चोर को पकड़ने में सारी सेना लगा दी जाती है | धन्यवाद |
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