सुप्रभात मित्रों !
हम पढ़े लिखे होकर भी मूर्खता की हदें पार कर जाते हैं | किसके जीवन में समस्याएँ नहीं आती हैं ? और ज़रा ध्यान से देखिए जो समस्या आपके जीवन में आई है वो तो, ज़्यादा दूर भी मत जाओ आपके पड़ौसी के यहाँ भी मिल जाएगी |
एक बार एक विदेशी व्यक्ति ने मुझ से कहा था की हिन्दुस्तानी आदमी दुखों के मामले में चालाक होता है वो उसी दुख से दुखी है जिस दुख से सामने वाला परंतु वह सामने वाले को यही कहेगा की जिस दुख से तुम दुखी हो वो समस्या अपने को नहीं है | यानी अपने दुख को भी व्यक्ति 'विशिष्ट' बताने की कोशिश करता है | निर्मल बाबा के प्रोग्राम को ही देखिए | जो व्यक्ति उनके दरबार में अपने दुखड़े बताता है क्या वे दुख आपके जीवन में कभी नहीं आए ? मैं तो कहता हूँ हर हिन्दुस्तानी उन्हीं सब दुखों से दुखी है| तो क्या हम सब निर्मल बाबा के दरबार में चलें जाएँ ? एक बात और क्या निर्मल बाबा को हमारे दुखों के बारे में पता नहीं हैं ? तो फिर वो एक बार में ही सभी पर 'किरपा' क्यों नहीं बरसा देते ? जो उनको दान में दे वही 'किरपा' क्यों पाता है ? मेरी राय में ये सब दुकाने है जिन पर दुखों का मोल भाव किया जाता है | मैने ऐसे भी कुछ लोगों को नज़दीक से देखा है जो ऐसे किसी बाबा के आशीर्वाद की बात करते हैं | उनकी असलियत कुछ ओर ही निकली | कुछ ने ग़लत तरीक़े से धन अर्जित कर लिया | उस धन से उनके जीवन में परिवर्तन आ गया | समाज का ध्यान बंटाने के लिए वे किसी बाबा की किरपा होने की बात करते थे | ऐसा एक नहीं आपके आसपास कई उदाहरण मिल जाएगे | खैर एक बात संत ने सही कही है "अजगर करे न चाकरी दे दाता के नाम दास मलूका कह गये सबके दाता राम |" ये बात ऐसे लोगों को देखकर ही बोली गई है | धन्यवाद |
-प्रियदर्शन शास्त्री
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