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Thursday, April 19, 2012

महँगाई का असली कारण


प्रिय मित्रों,
       कल हम सब्जी मंडी के प्रांगण में खड़े थे | एक सज्जन पुरुष गुस्से से तमतमाए ज़ोर ज़ोर से हल्ला कर रहे थे | हमने पूछा की भाई साहब क्या हुआ ? वे बोले सब्जी के भाव तो पूछो ज़रा, आसमान छू रहे हैं, ये सब सरकार का किया धरा है | हमने सज्जन की बात पर गौर करके प्रणब दा से भाव बढ़ने का कारण  तुरत पूछ लिया | दादा बोले भाई मुद्रास्फीति की दर बढ़ने से भाव ऊँचे है | हमें कुछ अजीब लगा | सो हमने सोचा प्रणब दा तो मनमोहन सेना के अद्ने से हो चुके एक सिपाही हैं चलो पूरी सेना से ही पूछलो नही तो सौ मुँह सौ बात | सेना से  भाव बढ़ने का कारण पूछा तो जवाब आया भाई साहब ! इसके पीछे विदेशी ताकतों का हाथ है | हम सोच में पड़ गए | आम नागरिक सोचने के सिवा कर भी क्या सकता है | चलो सब्जी वाले से ही पूछ लिया जाए | पास में एक सब्जी वाला ज़ोर ज़ोर से बांग दे रहा था 'लौकी सौ रुपये किलो'  'लौकी सौ रुपये किलो' | हमने कहा चुप कर पहले ये बता सब्जी इतनी महँगी क्यों है ? वो बोला क्या करें बाबूजी माल ही नहीं आरहा है | हमने पूछा ये माल कहाँ से आता है ? वो हस कर बोला क्यों मज़ाक़ करते हो सर ! माल कोई चाइना से थोड़े आ रहा है हमारे खेतों से आ रहा है | बड़ी मुश्किल से थोडा बहुत जुगाड़ कर माल बेच रहा हूँ | सब्जी वाले की बात सुन हम सीधे किसान के पास पहुँच गए | किसान बोला बाबूजी माल तो हमने खूब उगाया पर भाव ही नहीं मिलते | हम चकराए | हमने सब्जी वाले से किसान की बात कही | वो बोला हमें नही पता सर | सब्जी वाले की कही को हमने प्रणब दा को बताया तो वे बोले एक छोटा सा सब्जी वाला ज़्यादा जानता है या हम ? हम प्रणब दा की बात को लेकर मनमोहन सेना के पास पहुँच गए | जवाब आया कि भाई साहब आप सही जवाब के लिए सारी जगह भटक लिए | आपको महँगाई का सही कारण पता लगा ? इसीलिए जब बात के असली कारण का पता नहीं चलता है तो हम तो सीधा विदेशी ताक़तों का हाथ होना बता देते है समझे जनाब ! हम क्या कहते, हमें लगा सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा में, हिंदोस्ताँ तो वाकई अच्छा है पर उसके मुक़ाबले क्या हम उतने अच्छे हैं ? धन्यवाद |
- प्रियदर्शन शास्त्री

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